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शाकंभरी माता चालीसा Shakambari Mata Chalisa, mantra Shakambari Mata Chalisa, mantra  चालीसा : जे जे श्री शकुंभारी माता दोहा दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए। बाईं ओर सतची नेत्रों को चैन दीवलए। भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार। मां शकुंभारी देवी की जाग मई जे जे कार।। चौपाई Shakambari Mata Chalisa, mantra सूर्य देव के […]

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शाकंभरी माता चालीसा Shakambari Mata Chalisa, mantra

Shakambari Mata Chalisa, mantra  चालीसा : जे जे श्री शकुंभारी माता

दोहा
दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए।
बाईं ओर सतची नेत्रों को चैन दीवलए।
भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार।
मां शकुंभारी देवी की जाग मई जे जे कार।।
चौपाई

Shakambari Mata Chalisa, mantra

सूर्य देव के यह 108 नाम (अर्थ सहित) Aaj ka Rashifal, Dharam

जे जे श्री शकुंभारी माता। हर कोई तुमको सिष नवता।।
गणपति सदा पास मई रहते। विघन ओर बढ़ा हर लेते।।
हनुमान पास बलसाली। अगया टुंरी कभी ना ताली।।
मुनि वियास ने कही कहानी। देवी भागवत कथा बखनी।।
छवि आपकी बड़ी निराली। बढ़ा अपने पर ले डाली।।
अखियों मई आ जाता पानी। एसी किरपा करी भवानी।।
रुरू डेतिए ने धीयां लगाया। वार मई सुंदर पुत्रा था पाया।।
दुर्गम नाम पड़ा था उसका। अच्छा कर्म नहीं था जिसका।।
बचपन से था वो अभिमानी। करता रहता था मनमानी।।
योवां की जब पाई अवस्था। सारी तोड़ी धर्म वेवस्था।।
सोचा एक दिन वेद छुपा लूं। हर ब्रममद को दास बना लूं।।
देवी-देवता घबरागे। मेरी सरण मई ही आएगे।।
विष्णु शिव को छोड़ा उसने। ब्रह्माजी को धीयया उसने।।
भोजन छोड़ा फल ना खाया। वायु पीकेर आनंद पाया।।
जब ब्रहाम्मा का दर्शन पाया। संत भाव हो वचन सुनाया।।
चारों वेद भक्ति मई चाहू। महिमा मई जिनकी फेलौ।।
ब्ड ब्रहाम्मा वार दे डाला। चारों वेद को उसने संभाला।।
पाई उसने अमर निसनी। हुआ प्रसन्न पाकर अभिमानी।।
जैसे ही वार पाकर आया। अपना असली रूप दिखाया।।
धर्म धूवजा को लगा मिटाने। अपनी शक्ति लगा बड़ाने।।
बिना वेद ऋषि-मुनि थे डोले। पृथ्वी खाने लगी हिचकोले।।
अंबार ने बरसाए शोले। सब त्राहि-त्राहि थे बोले।।
सागर नदी का सूखा पानी। कला दल-दल कहे कहानी।।
पत्ते बी झड़कर गिरते थे। पासु ओर पाक्सी मरते थे।।
सूरज पतन जलती जाए। पीने का जल कोई ना पाए।।
चंदा ने सीतलता छोड़ी। समाए ने भी मर्यादा तोड़ी।।
सभी डिसाए थे मतियाली। बिखर गई पूज की तली।।
बिना वेद सब ब्रहाम्मद रोए। दुर्बल निर्धन दुख मई खोए।।
बिना ग्रंथ के कैसे पूजन। तड़प रहा था सबका ही मान।।
दुखी देवता धीयां लगाया। विनती सुन प्रगती महामाया।।
मा ने अधभूत दर्श दिखाया। सब नेत्रों से जल बरसाया।।
हर अंग से झरना बहाया। सतची सूभ नाम धराया।।
एक हाथ मई अन्न भरा था। फल भी दूजे हाथ धारा था।।
तीसरे हाथ मई तीर धार लिया। चोथे हाथ मई धनुष कर लिया।।
दुर्गम रक्चाश को फिर मारा। इस भूमि का भार उतरा।।
नदियों को कर दिया समंदर। लगे फूल-फल बाग के अंदर।।
हारे-भरे खेत लहराई। वेद ससत्रा सारे लोटाय।।
मंदिरों मई गूंजी सांख वाडी। हर्षित हुए मुनि जान पड़ी।।
अन्न-धन साक को देने वाली। सकंभारी देवी बलसाली।।
नो दिन खड़ी रही महारानी। सहारनपुर जंगल मई निसनी।।

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जानिए क्यों, हनुमान जी को इतना प्रिय है मंगलवार ? Dharam https://indlives.com/know-why-hanuman-dear-tuesday-dharam/ Wed, 09 Jan 2019 16:45:04 +0000 http://indlives.com/?p=1581

जानिए क्यों, हनुमान जी को इतना प्रिय है मंगलवार ? Dharam Dharam  Hanuman हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मंगलवार को भगवान बजरंगबली की पूजा की जाती है क्‍योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था। साथ ही बजरंगबली को मंगल ग्रह का नियंत्रक भी माना जाता है। यही वजह है कि […]

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जानिए क्यों, हनुमान जी को इतना प्रिय है मंगलवार ? Dharam

Dharam  Hanuman हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मंगलवार को भगवान बजरंगबली की पूजा की जाती है क्‍योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था। साथ ही बजरंगबली को मंगल ग्रह का नियंत्रक भी माना जाता है। यही वजह है कि इस दिन को हनुमान जी की पूजा के लिए नियत किया गया। ऐसा विश्‍वास किया जाता है कि इस दिन हनुमान जी की उपासना करने से साहस, आत्मविश्वास और आत्‍मशक्ति की प्राप्ति होती है। Dharam Hanuman

जब लंकापति रावण ने राम से मांग ली थी एक विचित्र दक्षिणा DHaram, ravan

Dharam Hanuman
जानिए मछलियां कैसे बदल सकती हैं आपका भाग्य
जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि महाभारत के युद्ध में हनुमान जी अर्जुन के रथ के ध्वज पर विराजमान थे और सारे युद्ध में उन्होंने पांडवों की रक्षा की थी। इसीलिए आयु रक्षा, मुकदमों तथा परीक्षा में विजय और संपत्ति की प्राप्ति के लिए हनुमान जी को मंगलवार को हनुमान जी पर तिकोनी केसरिया ध्वजा चढ़ाई जाती है।

सिन्दूर चढ़ाने से होती है मनोकामना पूर्ति
पौराणिक कथाओं के मुताबिक माता सीता को अपने स्वामी श्री राम को प्रसन्न करने के लिए सिंदूर से मांग भरते देख कर हनुमान जी ने शरीर में ढेर सारा सिन्दूर लगा लिया था ताकि श्री राम उनसे भी स्‍नेह करें। तभी से हनुमान जी को सिन्दूर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई। ऐसी मान्‍यता है कि हनुमान जी को सिन्दूर और चमेली का तेल चढ़ाने से रोगों और शारीरिक व्याधियों से मुक्ति मिलती है।

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