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कच्ची डोर का पक्का मिलन है रक्षाबंधन ( Raksha Bandhan) dharam tips Raksha Bandhan- रक्षाबंधन पर्व को असीम प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षासूत्र बांधती हैं और भाई अपनी बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। भाई बहन के असीम प्रेम का प्रतीक माना जाने वाला Raksha […]

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कच्ची डोर का पक्का मिलन है रक्षाबंधन ( Raksha Bandhan) dharam tips

Raksha Bandhan- रक्षाबंधन पर्व को असीम प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षासूत्र बांधती हैं और भाई अपनी बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। भाई बहन के असीम प्रेम का प्रतीक माना जाने वाला Raksha Bandhan पर्व को लेकर महिलाओं में विशेष उत्साह देखा गया। कस्बे के बाजारों में तरह तरह की राखियों से दुकानें सजी हुई थी और दुकानों पर राखी खरीदने वाली महिलाओं की भीड़ लगी हुई थी। महिलाएं अपने भाइयों की मगल कामना व लम्बी उमर के लिए इस पर्व के जरिए भगवान से दुआ करती है। रक्षाबंधन पर्व पर बहनों ने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा तो भाईयों ने भी अपनी बहनों को उनकी रक्षा करने का वचन दिया। मौसम अवाना ने बताया कि भाई बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक रक्षाबंधन को लेकर उनमें काफी उत्साह है। हमने अपने भाइयों को राखी बांधी और उनका मुहं मीठा करवाया। उन्होंने अच्छी अच्छी राखियां खरीद रखी थी। इस पर्व का इंतजार महिलाएं पूरे साल करती हैं। मोना रानी ने बताया कि वह रक्षाबंधन के पर्व को मनाने के लिए अपने भाई के लिए अच्छी अच्छी राखियां खरीद की और अपने भाई विपिन की कलाई पर बांधी भाई ने भी अपनी बहन की रक्षा का उनको वचन दिया। उनका एक भाई है जिससे वह बहुत प्यार करती है। भगवान से इस रक्षाबंधन पर्व के माध्यम से उसकी लम्बी आयु व तरक्की के लिए कामना करती है। वह पर्व को लेकर वह पिछले एक सप्ताह से तैयारी कर रही थी।

Raksha Bandhan पर्व को मनाने के लिए महिलाओं में अबकी बार खासा उत्साह था। भाई बहन के पवित्र रिश्ते को निभाने के लिए महिलाएं अलग अलग तरह की राखियां खरीदी थी। एक साल तक इंतजार करने के बाद वो अपने भाइयों के लिए विशेष त्यौहार मनाती हैं। वो भगवान से राखी के इस अटूट बंधन के जरिये अपने भाई को सुख समृद्वि देने की मंगल कामना करती हैं।

ग्रामीण अंचल में Raksha Bandhan के पर्व को लेकर काफी उत्साह है। भाई इस पर्व पर अपनी बहनों को उनकी सुरक्षा का वचन देता है और बहन अपने भाई की आयु लम्बी करने की भगवान से मंगल कामना करती है। उनके भाई ने भी उनको रक्षा का वचन दिया है। भाई की लम्बी आयु के लिए उन्होंने भगवान से दुआ की है।

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जाने क्यों मकर संक्रांति को बनाते हैं खिचड़ी और तिल के पकवान Astrology, Lohri https://indlives.com/why-makar-make-sankranti-khichadi-and-sesame-dish-lohri/ Thu, 10 Jan 2019 15:10:25 +0000 http://indlives.com/?p=1607

जाने क्यों मकर संक्रांति को बनाते हैं खिचड़ी और तिल के पकवान Astrology, dharam, Lohri, Makar Sankranti Astrology, dharam, Lohri, Makar Sankranti आप सभी को बता दें कि भगवान विष्णु एवं सूर्य देव को समर्पित पर्व मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान एवं पूजा-पाठ का खास महत्व माना जाता है. कहते हैं सूर्य का धनु […]

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जाने क्यों मकर संक्रांति को बनाते हैं खिचड़ी और तिल के पकवान Astrology, dharam, Lohri, Makar Sankranti

Astrology, dharam, Lohri, Makar Sankranti आप सभी को बता दें कि भगवान विष्णु एवं सूर्य देव को समर्पित पर्व मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान एवं पूजा-पाठ का खास महत्व माना जाता है. कहते हैं सूर्य का धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश होन ही मकर संक्रांति मनाने का कारण है. आप सभी को बता दें कि इस साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाने वाली है ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि मकर संक्रांति पर तिल के पकवान क्यों बनते हैं. आइए जानते हैं..?  Astrology, dharam, Lohri, Makar Sankranti

3 साल बाद लगा है सर्वार्थ सिद्धि योग, जानें इस वर्ष कब मनेगा मकर संक्रांति का त्योहार

मकर संक्रांति पर तिल के पकवान क्यों बनते हैं – श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण में दर्ज एक कथा के अनुसार शनि देव का हमेशा से ही अपने पिता सूर्य देव से वैर था. एक दिन सूर्य देव ने शनि और उसकी माता छाया को अपनी पहली पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद भाव करते हुए देख लिया. इससे नाराज होकर उन्होंने अपने जीवन से छाया और शनि को निकालने का कठोर फैसला लिया. इससे नाराज होकर शनि और छाया ने सूर्य को कुष्ठ रोग हो जाने का शाप दिया और वहां से चले गए.पिता को कुष्ठ रोग से परेशान होते देख यमराज ने तपस्या की. आखिरकार सूर्य देव कुष्ठ रोग से मुक्त हुए. किन्तु उनके मन में अभी भी शनी देव को लेकर क्रोध था. क्रोधित अवस्था में ही वे शनि देव के घर (कुंभ राशि में) गए और उसे जलाकर काला कर दिया. इसके बाद शनि और उनकी माता छाया को कष्ट भोगना पड़ा. अपनी सौतेली मां और शनी देव को दुख में देखकर यमराज ने उनकी मदद की. सूर्य देव को दोबारा उनसे मिलने भेजा. इस बार जब सूर्य देव वहां पहुंचें तो शनि देव ने ‘काले तिल’ से उनकी पूजा की. चूंकि घर में सब कुछ जल चुका था, इसलिए शनि देव के पास केवल तिल ही थे. शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि देव को वरदान दिया और कहा कि तुम्हारे दूसरे घर ‘मकर’ में आने पर तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा. इसी कारण से मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की तिल से पूजा की जाती है और अगले दिन तिल का सेवन किया जाता है. Astrology, dharam, Lohri, Makar Sankranti

मकर संक्रांति पर क्यों बनाते हैं खिचड़ी – एक कहानी के अनुसार कहा जाता है कि खिचड़ी का आविष्कार पहली बार भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाली बाबा गोरखनाथ ने किया था. जब खिलजी ने आक्रमण किया था तब नाथ योगियों के पास युद्ध के बाद खाना बनाने का समय नहीं बचता था. इस परेशानी को देखते हुए बारा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ एक ही बर्तन में पकाने की सलाह दे. इससे जो व्यंजन तैयार हुआ वह झट से बन भी गया और स्वादिष्ट भी लगा. इसे खाने में भी कम समय लगा और इससे शरीर में ऊर्जा भी बनी रहती थी. बारा गोरखनाथ ने स्वयं इस पकवान का नाम खिचड़ी रखा. कहते है कि वह मकर संक्रांति का ही समय था जिसके बाद से हमेशा इस दिन खिचड़ी बनाई जाती है.

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जब लंकापति रावण ने राम से मांग ली थी एक विचित्र दक्षिणा DHaram, ravan https://indlives.com/when-lankapati-ravana-sought-for-rama-from-a-strange-dakshina-dharam/ Tue, 08 Jan 2019 17:02:14 +0000 http://indlives.com/?p=1551

जब लंकापति रावण ने राम से मांग ली थी एक विचित्र दक्षिणा DHaram, ravan   DHaram, ravan आप सभी ने प्रभु श्री राम और लंकापति रावण से जुडी कई कहनियाँ सुनी होंगी. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं वो कथा जब लंकापति रावण ने राम से मांगी थी एक विचित्र दक्षिणा. आइए बताते हैं. DHaram, […]

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जब लंकापति रावण ने राम से मांग ली थी एक विचित्र दक्षिणा DHaram, ravan

 

DHaram, ravan आप सभी ने प्रभु श्री राम और लंकापति रावण से जुडी कई कहनियाँ सुनी होंगी. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं वो कथा जब लंकापति रावण ने राम से मांगी थी एक विचित्र दक्षिणा. आइए बताते हैं. DHaram, ravan

आर्थिक लाभ के लिए करें यह उपाय, बरसेगी समृद्धि Dharam, Aaj Ka Rashifal

पौराणिक कथा – प्रभु श्री राम ने रामेश्वरम में जब शिवलिंग की स्थापना करी थी तब ब्राह्मण के कार्य के लिए उन्होंने रावण को निमंत्रित किया. रावण ने भी उस निमंत्रण को स्वीकार किया तथा उस अनुष्ठान के आचार्य बने. रावण त्रिकालज्ञ था, वह यह जानता था की उसकी मृत्यु सिर्फ श्री राम के हाथो लिखी गई है. वह भगवान श्री राम से कुछ भी दक्षिणा में मांग सकता था परन्तु वह जानता था की उसकी मृत्यु भगवान श्री राम के हाथो लिखी गई है. आइये जानते है की आखिर कौन सी विचित्र दक्षिणा रावण ने श्री राम से मांगी थी ?

श्री राम द्वारा जामवन्त जी को रावण को निमंत्रण देने के लिए भेजा गया. जामवन्त जी के शरीर का आकर विशाल था, तथा कुम्भकर्ण के आकर की तुलना में वह तनिक ही छोटे थे. इस बार राम ने बुद्ध-प्रबुद्ध, भयानक और वृहद आकार जामवन्त को भेजा . पहले हनुमान, फिर अंगद एवं अब जामवन्त.

जब जामवन्त के लंका में पधारने की खबर लंका वासियो को चली तो सभी इस बात से डर से सिहर गए. निश्चित रूप से दिखने में जाम्पवन्त थोड़े अधिक भयावह थे. जामवन्त को सागर सेतु लंका मार्ग सुनसान मिला. कही कोई भी जामवन्त को दिख जाता तो वह केवल इशारे मात्र से राजपथ का रस्ता बता देता. उनके सम्मुख खड़े होने एवं बोलने का साहस किसी में न था.

यहाँ तक स्वयं लंका के प्रहरी उन्हें मार्ग दिखा रहे थे. उन्हें किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं पड़ी. जामवन्त के लंका पधारने की खबर द्वारपाल ने रावण तक दौड़ के पहुंचाई. रावण स्वयं चलकर जामवन्त के स्वागत के लिए राज महल से बाहर आया तथा जामवन्त का सेवा सत्कार करने लगा. रावण को देख जामवन्त मुस्कराए तथा रावण से बोले में तुम्हारे अभिनंदन का पात्र नहीं हु.

क्योकि में यहाँ वनवासी राम के दूत के रूप में यहाँ आया हु. रावण ने जामवन्त की बात सुन महल के भीतर आमंत्रित किया. तथा जामवन्त को आसन में बैठाकर उनके साथ आसन में बैठा. DHaram, ravan

जामवन्त ने पुनः सुनाया कि वनवासी राम ने तुम्हें प्रणाम कहा है. वे सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्व-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं. इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव रावण को आचर्य पद पर वरण करने की इच्ठा प्रकट की है . मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूँ.

हालाकि रावण यह जानता था की भगवान राम द्वारा यह अनुष्ठान स्वयं उसके पराजय के लिए किया जा रहा है, परन्तु उसने जामवन्त द्वारा सुनाया गया यह निमंत्रण खुसी खुसी स्वीकार लिया. परन्तु रावण के मस्तिक में उस समय एक अजीब सा प्रसन आया और वह जामवन्त से बोला जामवंत जी ! आप जानते ही हैं कि त्रिभुवन विजयी अपने इस शत्रु की लंकापुरी में आप पधारे हैं . यदि हम आपको यहाँ बंदी बना लें और आपको यहाँ से लौटने न दें तो आप क्या करेंगे ? जामवंत खुलकर हँसे .

मुझे निरुद्ध करने की शक्ति समस्त लंका के दानवों के संयुक्त प्रयास में नहीं है, किन्तु मुझ किसी भी प्रकार की कोई विद्वत्ता प्रकट करने की न तो अनुमति है और न ही आवश्यकता. ध्यान रहे, मैं अभी एक ऐसे उपकरण के साथ यहां विद्यमान हूँ, जिसके माध्यम से धनुर्धारी लक्ष्मण यह दृश्यवार्ता स्पष्ट रूप से देख-सुन रहे हैं . जब मैं वहाँ से चलने लगा था तभी धनुर्वीर लक्ष्मण वीरासन में बैठे हुए हैं . DHaram, ravan

उन्होंने आचमन करके अपने त्रोण से पाशुपतास्त्र निकाल कर संधान कर लिया है और मुझसे कहा है कि जामवन्त ! रावण से कह देना कि यदि आप में से किसी ने भी मेरा विरोध प्रकट करने की चेष्टा की तो यह पाशुपतास्त्र समस्त दानव कुल के संहार का संकल्प लेकर तुरन्त छूट जाएगा. इस कारण भलाई इसी में है कि आप मुझे अविलम्ब वांछित प्रत्युत्तर के साथ सकुशल और आदर सहित धनुर्धर लक्ष्मण के दृष्टिपथ तक वापस पहुंचाने की व्यवस्था करें.

यह बात सुन वहां उपस्थित सभी दानव भयभीत हो उठे. यहाँ तक की रावण भी इस बात को सुन काँप गया. पाशुपतास्त्र ! महेश्वर का यह अमोघ अस्त्र तो सृष्टि में एक साथ दो धनुर्धर प्रयोग ही नहीं कर सकते . अब भले ही वह रावण मेघनाथ के त्रोण में भी हो.

जब लक्ष्मण ने उसे संधान स्थिति में ला ही दिया है, तब स्वयं भगवान शिव भी अब उसे उठा नहीं सकते . उसका तो कोई प्रतिकार है ही नहीं . रावण ने अपने आपको संभाल कर कहा – आप पधारे. यजमान उचित अधिकारी है. उसे अपने दूत को संरक्षण देना आता है. राम से कहिएगा कि मैंने उनका आचर्यतत्व स्वीकार किया.

इसके पश्चात जामवन्त रावण का संदेश लेकर वापस लोट आये.

जामवन्त के वापस लौटने के पश्चात रावण अशोक वाटिका माता सीता के पास पहुंचा और बोला की राम द्वारा विजयी प्राप्ति के लिए अनुष्ठान किया जा रहा है और उनका आचर्य हु. यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व यजमान का ही होता है और यह बात तुम्हे ज्ञात ही के अर्धांगिनी के बिना अनुष्ठान जैसा पवित्र कार्य एक गृहस्थ के लिए अपूर्ण माना जाता है. अतः राम के इस कार्य पूर्ण करने के लिए तुम मेरे विमान में बैठ जाओ पर ध्यान रहे की तुम उस वक्त भी मेरे अधीन ही रहोगी.

इसके बाद रावण माता सीता के साथ उस स्थान पर जहाँ श्री राम ने अनुष्ठान का आयोजन किया था. भगवान राम ने रावण को प्रणाम करने के साथ ही उसका उचित आदर सत्कार किया. इसके पश्चात रावण द्वारा अनुष्ठान सम्पन करया गया.

अब बारी थी यज्ञ के बाद राम द्वारा आचार्य रावण को दक्षिणा देने की. राम ने दक्षिणा की प्रतिज्ञा लेते हुए रावण से कहा की आचार्य आप की दक्षिणा ?

परन्तु रावण ने कहा वह आश्चर्य चकित करने वाला था. प्रभु राम का शत्रु होने के बावजूद रावण राम जी से कहा घबराओ नहीं यजमान में कोई ऐसी वास्तु अथवा सम्पति दक्षिणा में नहीं मांगूंगा जो आप देने में असमर्थ हो या जो आपको अपने प्राणो से भी प्रिय हो. यह आचर्य तो अपने यजमान से सिर्फ यही दक्षिणा में चाहता है की जब वह मृत्यु शैय्या ग्रहण करें तो यजमान सम्मुख हो. भगवान श्री राम ने रावण को वचन दिया की वह समय आने पर अपना वादा जरूर निभाएंगे.

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बिना माँ के जन्मे थे कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य, जानिए दोनों की जन्म की कथा dharam https://indlives.com/born-without-mother-kripacharya-dronacharya-know-story-birth-both-dharam/ Sat, 05 Jan 2019 19:28:25 +0000 http://indlives.com/?p=1545

बिना माँ के जन्मे थे कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य, जानिए दोनों की जन्म की कथा dharam dharam दुनिया के बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य का जन्म कैसे हुआ. जी हाँ, इसी के साथ बहुत कम लोग इस बात से भी वाकिफ है कि दोनों ने बिना माँ के जन्म […]

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बिना माँ के जन्मे थे कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य, जानिए दोनों की जन्म की कथा dharam

dharam

दुनिया के बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य का जन्म कैसे हुआ. जी हाँ, इसी के साथ बहुत कम लोग इस बात से भी वाकिफ है कि दोनों ने बिना माँ के जन्म लिया था. अगर आप भी उन्ही में से एक है जिन्हे इनके जन्म की कथा नहीं पता तो आइए आज हम आपको बताते हैं इनके जन्म की कथा.

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पौराणिक कथा – गौतम ऋषि के पुत्र का नाम शरद्वान था. उनका जन्म बाणों के साथ हुआ था. उन्हें वेदाभ्यास में जरा भी रुचि नहीं थी और धनुर्विद्या से उन्हें अत्यधिक लगाव था. वे धनुर्विद्या में इतने निपुण हो गये कि देवराज इन्द्र उनसे भयभीत रहने लगे. इन्द्र ने उन्हें साधना से डिगाने के लिये नामपदी नामक एक देवकन्या को उनके पास भेज दिया. उस देवकन्या के सौन्दर्य के प्रभाव से शरद्वान इतने कामपीड़ित हुये कि उनका वीर्य स्खलित हो कर एक सरकंडे पर आ गिरा. वह सरकंडा दो भागों में विभक्त हो गया जिसमें से एक भाग से कृप नामक बालक उत्पन्न हुआ और दूसरे भाग से कृपी नामक कन्या उत्पन्न हुई.

कृप भी धनुर्विद्या में अपने पिता के समान ही पारंगत हुये. भीष्म जी ने इन्हीं कृप को पाण्डवों और कौरवों की शिक्षा-दीक्षा के लिये नियुक्त किया और वे कृपाचार्य के नाम से विख्यात हुये.गौतम ऋषि के पुत्र का नाम शरद्वान था. उनका जन्म बाणों के साथ हुआ था. उन्हें वेदाभ्यास में जरा भी रुचि नहीं थी और धनुर्विद्या से उन्हें अत्यधिक लगाव था. वे धनुर्विद्या में इतने निपुण हो गये कि देवराज इन्द्र उनसे भयभीत रहने लगे. इन्द्र ने उन्हें साधना से डिगाने के लिये नामपदी नामक एक देवकन्या को उनके पास भेज दिया. उस देवकन्या के सौन्दर्य के प्रभाव से शरद्वान इतने कामपीड़ित हुये कि उनका वीर्य स्खलित हो कर एक सरकंडे पर आ गिरा. वह सरकंडा दो भागों में विभक्त हो गया जिसमें से एक भाग से कृप नामक बालक उत्पन्न हुआ और दूसरे भाग से कृपी नामक कन्या उत्पन्न हुई. कृप भी धनुर्विद्या में अपने पिता के समान ही पारंगत हुये. भीष्म जी ने इन्हीं कृप को पाण्डवों और कौरवों की शिक्षा-दीक्षा के लिये नियुक्त किया और वे कृपाचार्य के नाम से विख्यात हुये. कालान्तर में उसी यज्ञ पात्र से द्रोण की उत्पत्ति हुई. द्रोण अपने पिता के आश्रम में ही रहते हुये चारों वेदों तथा अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान में पारंगत हो गये. द्रोण के साथ प्रषत् नामक राजा के पुत्र द्रुपद भी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तथा दोनों में प्रगाढ़ मैत्री हो गई. उन्हीं दिनों परशुराम अपनी समस्त सम्पत्ति को ब्राह्मणों में दान कर के महेन्द्राचल पर्वत पर तप कर रहे थे. एक बार द्रोण उनके पास पहुँचे और उनसे दान देने का अनुरोध किया. इस पर परशुराम बोले, “वत्स! तुम विलम्ब से आये हो, मैंने तो अपना सब कुछ पहले से ही ब्राह्मणों को दान में दे डाला है. अब मेरे पास केवल अस्त्र-शस्त्र ही शेष बचे हैं. तुम चाहो तो उन्हें दान में ले सकते हो.”

द्रोण यही तो चाहते थे अतः उन्होंने कहा, “हे गुरुदेव! आपके अस्त्र-शस्त्र प्राप्त कर के मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होगी, किन्तु आप को मुझे इन अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा-दीक्षा देनी होगी तथा विधि-विधान भी बताना होगा.” इस प्रकार परशुराम के शिष्य बन कर द्रोण अस्त्र-शस्त्रादि सहित समस्त विद्याओं के अभूतपूर्व ज्ञाता हो गये. शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात द्रोण का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ हो गया. कृपी से उनका एक पुत्र हुआ. उनके उस पुत्र के मुख से जन्म के समय अश्व की ध्वनि निकली इसलिये उसका नाम अश्वत्थामा रखा गया.

किसी प्रकार का राजाश्रय प्राप्त न होने के कारण द्रोण अपनी पत्नी कृपी तथा पुत्र अश्वत्थामा के साथ निर्धनता के साथ रह रहे थे. एक दिन उनका पुत्र अश्वत्थामा दूध पीने के लिये मचल उठा किन्तु अपनी निर्धनता के कारण द्रोण पुत्र के लिये गाय के दूध की व्यवस्था न कर सके. अकस्मात् उन्हें अपने बाल्यकाल के मित्र राजा द्रुपद का स्मरण हो आया जो कि पाञ्चाल देश के नरेश बन चुके थे. द्रोण ने द्रुपद के पास जाकर कहा, “मित्र! मैं तुम्हारा सहपाठी रह चुका हूँ. मुझे दूध के लिये एक गाय की आवश्यकता है और तुमसे सहायता प्राप्त करने की अभिलाषा ले कर मैं तुम्हारे पास आया हूँ.” इस पर द्रुपद अपनी पुरानी मित्रता को भूलकर तथा स्वयं के नरेश होने के अहंकार के वश में आकर द्रोण पर बिगड़ उठे और कहा, “तुम्हें मुझको अपना मित्र बताते हुये लज्जा नहीं आती? मित्रता केवल समान वर्ग के लोगों में होती है, तुम जैसे निर्धन और मुझ जैसे राजा में नहीं.”अपमानित होकर द्रोण वहाँ से लौट आये और कृपाचार्य के घर गुप्त रूप से रहने लगे. एक दिन युधिष्ठिर आदि राजकुमार जब गेंद खेल रहे थे तो उनकी गेंद एक कुएँ में जा गिरी.

उधर से गुजरते हुये द्रोण से राजकुमारों ने गेंद को कुएँ से निकालने लिये सहायता माँगी. द्रोण ने कहा, “यदि तुम लोग मेरे तथा मेरे परिवार के लिये भोजन का प्रबन्ध करो तो मैं तुम्हारा गेंद निकाल दूँगा.” युधिष्ठिर बोले, “देव! यदि हमारे पितामह की अनुमति होगी तो आप सदा के लिये भोजन पा सकेंगे.” द्रोणाचार्य ने तत्काल एक मुट्ठी सींक लेकर उसे मन्त्र से अभिमन्त्रित किया और एक सींक से गेंद को छेदा.

फिर दूसरे सींक से गेंद में फँसे सींक को छेदा. इस प्रकार सींक से सींक को छेदते हुये गेंद को कुएँ से निकाल दिया. इस अद्भुत प्रयोग के विषय में तथा द्रोण के समस्त विषयों मे प्रकाण्ड पण्डित होने के विषय में ज्ञात होने पर भीष्म पितामह ने उन्हें राजकुमारों के उच्च शिक्षा के नियुक्त कर राजाश्रय में ले लिया और वे द्रोणाचार्य के नाम से विख्यात हुये.

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परीक्षा में सफलता के लिए पढ़ें अत्यंत सरल सरस्वती मंत्र Dharam, Aaj Ka Rashifal https://indlives.com/read-simple-saraswati-mantra-success-exam/ Sat, 05 Jan 2019 19:21:31 +0000 http://indlives.com/?p=1542

परीक्षा में सफलता के लिए पढ़ें अत्यंत सरल सरस्वती मंत्र Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra, Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra, प्रतिदिन सुबह स्नान इत्यादि से निवृत्त होने के बाद मंत्र जप आरंभ करें। अपने सामने मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें। Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra, भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन से हैं, […]

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परीक्षा में सफलता के लिए पढ़ें अत्यंत सरल सरस्वती मंत्र Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra,

Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra, प्रतिदिन सुबह स्नान इत्यादि से निवृत्त होने के बाद मंत्र जप आरंभ करें।
अपने सामने मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें। Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra,

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अब चित्र या यंत्र के ऊपर श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प व अक्षत (चावल) भेंट करें और धूप-दीप जलाकर देवी की पूजा करें और अपनी मनोकामना का मन में स्मरण करके स्फटिक की माला से किसी भी सरस्वती मंत्र की शांत मन से 1 माला फेरें।

* सरस्वती मूल मंत्र :
ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नम:।
* सरस्वती मंत्र :
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम:।
* सरस्वती-गायत्री मंत्र :
ॐ सरस्वत्यै विधमहे, ब्रह्मपुत्रयै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोद्यात।
ॐ वाग देव्यै विधमहे काम राज्या धीमहि। तन्नो सरस्वती: प्रचोदयात।

* ज्ञान वृद्धि का गायत्री मंत्र :
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
* परीक्षा भय निवारण हेतु :
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वीणा पुस्तक धारिणीम् मम् भय निवारय निवारय अभयम् देहि देहि स्वाहा।
* स्मरण शक्ति नियंत्रण हेतु :
ॐ ऐं स्मृत्यै नम:।
* विघ्न निवारण हेतु :
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परम रक्षिणी मम सर्व विघ्न बाधा निवारय निवारय स्वाहा।
* स्मरण शक्ति बढ़ाने का मंत्र :
ऐं नम: भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।
* परीक्षा में सफलता के लिए :
ॐ नम: श्रीं श्रीं अहं वद वद वाग्वादिनी भगवती सरस्वत्यै नम: स्वाहा विद्यां देहि मम ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा।
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी, कवि उर अजिर नचावहिं बानी।
मोरि सुधारिहिं सो सब भांती, जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।
* मां सरस्वती का मानस पूजा मंत्र :
ॐ ऐं क्लीं सौ: ह्रीं श्रीं ध्रीं वद वद वाग्-वादिनि सौ: क्लीं ऐं श्रीसरस्वत्यै नम:।
इस मंत्र का 21 बार जप करें।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं महासरस्वत्यै नम:।

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आर्थिक लाभ के लिए करें यह उपाय, बरसेगी समृद्धि Dharam, Aaj Ka Rashifal https://indlives.com/make-remedy-economic-benefits-rainy-prosperity-dharam-aaj-ka-rashifal/ Sat, 05 Jan 2019 19:14:04 +0000 http://indlives.com/?p=1539

आर्थिक लाभ के लिए करें यह उपाय, बरसेगी समृद्धि Dharam, Aaj Ka Rashifal Dharam,  Aaj Ka Rashifal हर इंसान की जिंदगी में धन की जरूरत हमेशा बनी रहती है। वह चाहता है कि उसके जीवन में कभी धन की कमी महसूस न हो। धन के अभाव का उसको सामना न करना पड़े और सुख-समृद्धि के […]

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आर्थिक लाभ के लिए करें यह उपाय, बरसेगी समृद्धि Dharam, Aaj Ka Rashifal

Dharam,  Aaj Ka Rashifal हर इंसान की जिंदगी में धन की जरूरत हमेशा बनी रहती है। वह चाहता है कि उसके जीवन में कभी धन की कमी महसूस न हो। धन के अभाव का उसको सामना न करना पड़े और सुख-समृद्धि के साथ उसका जीवन व्यतीत हो। इसके लिए व्यक्ति हरसंभव उपाय करता है, लेकिन इसके बावजूद कई बार उसको सही राह पर चलने और विधि उपाय करने के बावजूद धन की कमी का सामना करना पड़ता है। हम आपको कुछ ऐसे शास्त्रोक्त उपायों को बता रहे हैं, जिससे आप अपने घर में सात्विक तरीके से अपने धन के अभाव को दूर कर सकते हैं और अपने जीवन में स्थाई सुख-समृद्धि का वास कर सकते हैं। Dharam,  Aaj Ka Rashifal

अपने घर में ऐसे लाएं सुख, शांति और समृद्धि Aaj Ka Rashifal

Dharam,  Aaj Ka Rashifal
1 अकस्मात धन प्राप्ति के लिए महालक्ष्मी मंदिर में लगातार सात शुक्रवार को धूप अगरबत्ती दान करें।

2 अतुल धन प्राप्ति के लिए पुष्प नक्षत्र में रविवार को बहेड़ा के जड़ और पत्ते लाएं और पूजा करने के बाद लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें और रोजाना धूप दीप दिखाकर प्रणाम करें।

3 गुरूवार को तुलसी के पौधे को दूध चढ़ाने से घर में लक्ष्मी का वास रहता है।

4 शुक्रवार को निर्धनों को गुड़-चना और मंगलवार को बंदरों को चना खिलाने से आय के स्त्रोत में वृद्धी होती है।

5 शयनकक्ष में झूठे बर्तन रखने से कारोबार में हानि होती है।

6 ईशान कोण में तुलसी का पौधा लगाने से उधार नही रुकता है।

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