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परीक्षा में सफलता के लिए पढ़ें अत्यंत सरल सरस्वती मंत्र Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra, Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra, प्रतिदिन सुबह स्नान इत्यादि से निवृत्त होने के बाद मंत्र जप आरंभ करें। अपने सामने मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें। Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra, भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन से हैं, […]

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परीक्षा में सफलता के लिए पढ़ें अत्यंत सरल सरस्वती मंत्र Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra,

Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra, प्रतिदिन सुबह स्नान इत्यादि से निवृत्त होने के बाद मंत्र जप आरंभ करें।
अपने सामने मां सरस्वती का यंत्र या चित्र स्थापित करें। Dharam, Aaj Ka Rashifal, mantra,

भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन से हैं, जानिए Aaj Ka Rashifal

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अब चित्र या यंत्र के ऊपर श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प व अक्षत (चावल) भेंट करें और धूप-दीप जलाकर देवी की पूजा करें और अपनी मनोकामना का मन में स्मरण करके स्फटिक की माला से किसी भी सरस्वती मंत्र की शांत मन से 1 माला फेरें।

* सरस्वती मूल मंत्र :
ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नम:।
* सरस्वती मंत्र :
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम:।
* सरस्वती-गायत्री मंत्र :
ॐ सरस्वत्यै विधमहे, ब्रह्मपुत्रयै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोद्यात।
ॐ वाग देव्यै विधमहे काम राज्या धीमहि। तन्नो सरस्वती: प्रचोदयात।

* ज्ञान वृद्धि का गायत्री मंत्र :
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
* परीक्षा भय निवारण हेतु :
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वीणा पुस्तक धारिणीम् मम् भय निवारय निवारय अभयम् देहि देहि स्वाहा।
* स्मरण शक्ति नियंत्रण हेतु :
ॐ ऐं स्मृत्यै नम:।
* विघ्न निवारण हेतु :
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परम रक्षिणी मम सर्व विघ्न बाधा निवारय निवारय स्वाहा।
* स्मरण शक्ति बढ़ाने का मंत्र :
ऐं नम: भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।
* परीक्षा में सफलता के लिए :
ॐ नम: श्रीं श्रीं अहं वद वद वाग्वादिनी भगवती सरस्वत्यै नम: स्वाहा विद्यां देहि मम ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा।
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी, कवि उर अजिर नचावहिं बानी।
मोरि सुधारिहिं सो सब भांती, जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।
* मां सरस्वती का मानस पूजा मंत्र :
ॐ ऐं क्लीं सौ: ह्रीं श्रीं ध्रीं वद वद वाग्-वादिनि सौ: क्लीं ऐं श्रीसरस्वत्यै नम:।
इस मंत्र का 21 बार जप करें।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं महासरस्वत्यै नम:।

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भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन से हैं, जानिए Aaj Ka Rashifal https://indlives.com/know-who-24-incarnations-lord-vishnu-aaj-ka-rashifal/ Thu, 27 Dec 2018 17:59:29 +0000 http://indlives.com/?p=1477

भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन से हैं, जानिए Aaj Ka Rashifal Aaj Ka Rashifal  vishnu जब-जब पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते हैं। भगवान शिव और भगवान विष्णु ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिया है। भगवान विष्णु के 24 वें अवतार के बारे में […]

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भगवान विष्णु के 24 अवतार कौन से हैं, जानिए Aaj Ka Rashifal

Aaj Ka Rashifal  vishnu जब-जब पृथ्वी पर कोई संकट आता है तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते हैं। भगवान शिव और भगवान विष्णु ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिया है। भगवान विष्णु के 24 वें अवतार के बारे में कहा जाता है कि‘कल्कि अवतार’के रूप में उनका आना सुनिश्चित है।  vishnu

उनके 23 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं। इन 24 अवतार में से 10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते हैं। यह है मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार. कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, कल्कि अवतार। आइए जानें विस्तार से….

शिव की पूजा करने वाले भोगते हैं यह श्राप shiv puja, aaj ka rashifal

vishnu
1- श्री सनकादि मुनि :
धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में लोक पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया। ये चारों प्राकट्य काल से ही मोक्ष मार्ग परायण, ध्यान में तल्लीन रहने वाले, नित्यसिद्ध एवं नित्य विरक्त थे। ये भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं। Aaj Ka Rashifal
2- वराह अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार वराह रूप में लिया था। वराह अवतार से जुड़ी कथा इस प्रकार है- पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।
जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया।
3- नारद अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार देवर्षि नारद भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। उन्होंने कठिन तपस्या से देवर्षि पद प्राप्त किया है। वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते हैं। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में देवर्षि नारद को भगवान का मन भी कहा गया है। श्रीमद्भागवतगीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं।
4- नर-नारायण :
सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों में अवतार लिया। इस अवतार में वे अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे। उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र एवं वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। उनका संपूर्ण वेष तपस्वियों के समान था। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर-नारायण के रूप में यह अवतार लिया था।
5- कपिल मुनि :
भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया। इनके पिता का नाम महर्षि कर्दम व माता का नाम देवहूति था। शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह के शरीर त्याग के समय वेदज्ञ व्यास आदि ऋषियों के साथ भगवा कपिल भी वहां उपस्थित थे। भगवान कपिल के क्रोध से ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे। भगवान कपिल सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं। कपिल मुनि भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में से एक हैं। Aaj Ka Rashifal
6- दत्तात्रेय अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय भी भगवान विष्णु के अवतार हैं। इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है-
एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पातिव्रत्य पर अत्यंत गर्व हो गया। भगवान ने इनका अंहकार नष्ट करने के लिए लीला रची। उसके अनुसार एक दिन नारदजी घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों को बारी-बारी जाकर कहा कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के सामने आपका सतीत्व कुछ भी नहीं। तीनों देवियों ने यह बात अपने स्वामियों को बताई और उनसे कहा कि वे अनुसूइया के पातिव्रत्य की परीक्षा लें।
तब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधु वेश बनाकर अत्रि मुनि के आश्रम आए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। तीनों ने देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी मगर यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी। अनुसूइया पहले तो यह सुनकर चौंक गई, लेकिन फिर साधुओं का अपमान न हो इस डर से उन्होंने अपने पति का स्मरण किया और बोला कि यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं।
ऐसा बोलते ही त्रिदेव शिशु होकर रोने लगे। तब अनुसूइया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झूलाने लगीं। जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई। तीनों देवियां अनुसूइया के पास आईं और क्षमा मांगी। तब देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में कर दिया। प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।
7- यज्ञ :
भगवान विष्णु के सातवें अवतार का नाम यज्ञ है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था। स्वायम्भुव मनु की पत्नी शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ। वे रूचि प्रजापति की पत्नी हुई। इन्हीं आकूति के यहां भगवान विष्णु यज्ञ नाम से अवतरित हुए। भगवान यज्ञ के उनकी धर्मपत्नी दक्षिणा से अत्यंत तेजस्वी बारह पुत्र उत्पन्न हुए। वे ही स्वायम्भुव मन्वन्तर में याम नामक बारह देवता कहलाए।
8- भगवान ऋषभदेव :
भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में आठवांं अवतार लिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार महाराज नाभि की कोई संतान नहीं थी। इस कारण उन्होंने अपनी धर्मपत्नी मेरुदेवी के साथ पुत्र की कामना से यज्ञ किया। यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने महाराज नाभि को वरदान दिया कि मैं ही तुम्हारे यहां पुत्र रूप में जन्म लूंगा।
वरदान स्वरूप कुछ समय बाद भगवान विष्णु महाराज नाभि के यहां पुत्र रूप में जन्मे। पुत्र के अत्यंत सुंदर सुगठित शरीर, कीर्ति, तेल, बल, ऐश्वर्य, यश, पराक्रम और शूरवीरता आदि गुणों को देखकर महाराज नाभि ने उसका नाम ऋषभ (श्रेष्ठ) रखा।
9- आदिराज पृथु :
भगवान विष्णु के एक अवतार का नाम आदिराज पृथु है। धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वायम्भुव मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीथा के साथ हुआ। उनके यहां वेन नामक पुत्र हुआ। उसने भगवान को मानने से इंकार कर दिया और स्वयं की पूजा करने के लिए कहा।
तब महर्षियों ने मंत्र पूत कुशों से उसका वध कर दिया। तब महर्षियों ने पुत्रहीन राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिससे पृथु नाम पुत्र उत्पन्न हुआ। पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल का चिह्न देखकर ऋषियों ने बताया कि पृथु के वेष में स्वयं श्रीहरि का अंश अवतरित हुआ है। Aaj Ka Rashifal
10- मत्स्य अवतार :
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार लिया था। इसकी कथा इस प्रकार है- कृतयुग के आदि में राजा सत्यव्रत हुए। राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे। अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आई। उन्होंने देखा तो सोचा वापस सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने बोला- आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया। मछली और बड़ी हो गई तो राजा ने उसे अपने सरोवर में रखा, तब देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई। Aaj Ka Rashifal
राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है। राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना सुन साक्षात चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि ये मेरा मत्स्यावतार है। भगवान ने सत्यव्रत से कहा- सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद प्रलय होगी। तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा।
उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना। उस समय प्रश्न पूछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, जिससे मेरी महिमा जो परब्रह्म नाम से विख्यात है, तुम्हारे ह्रदय में प्रकट हो जाएगी। तब समय आने पर मत्स्यरूपधारी भगवान विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया, जो मत्स्यपुराण नाम से प्रसिद्ध है। Aaj Ka Rashifal

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जीवन जीने की उत्तम शिक्षा देती है रामायण Aaj Ka Rashifal https://indlives.com/ramayana-gives-perfect-education-to-live-life-aaj-ka-rashifal/ Wed, 26 Dec 2018 18:19:41 +0000 http://indlives.com/?p=1472

जीवन जीने की उत्तम शिक्षा देती है रामायण Aaj Ka Rashifal Aaj Ka Rashifal भरत जी तो नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न लाल जी महाराज उनके आदेश से राज्य संचालन करते थे। धीरे-धीरे भगवान राम को वनवास हुए तेरह वर्ष बीत चुक थे। एक रात की बात है, माता कौशल्या जी को रात में अपने […]

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जीवन जीने की उत्तम शिक्षा देती है रामायण Aaj Ka Rashifal

Aaj Ka Rashifal भरत जी तो नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्न लाल जी महाराज उनके आदेश से राज्य संचालन करते थे। धीरे-धीरे भगवान राम को वनवास हुए तेरह वर्ष बीत चुक थे। एक रात की बात है, माता कौशल्या जी को रात में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। उनकी नींद खुल गई, दासियों को देखने के लिए भेजा। पता चला कि श्रुतिकीर्तिजी हैं, माता कौशल्या ने उन्हें नीचे बुलाया।  Aaj Ka Rashifal

Aaj Ka Rashifal
श्रुति, जो सबसे छोटी थीं महल में पहुंचीं और माता के पांव छुए। राममाता ने पूछा, श्रुति! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो पुत्री, क्या नींद नहीं आ रही? शत्रुघ्न कहां है, यह सुनकर श्रुति की आंखें भर आईं, वे मां से चिपट गईं और बोलीं कि उन्हें देखे तो 13 वर्ष बीत गए। सुनकर माता कौशल्या जी का कलेजा कांप गया। उन्होंने तुरंत सेवक को आवाज दी और आधी रात में ही पालकी तैयार कराई। माता ने शत्रुघ्न जी की खोज की।

काफी खोज के बाद माता की नजर एक पत्थर की शिला पर गई, जहां शुत्रघ्न अपनी बांह का तकिया बनाकर लेटे थे। आपको बता दें कि यह अयोध्या के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी बनकर रहते थे, उसी दरवाजे के भीतर ही पत्थर की यह शिला थी, जिसपर शत्रुघ्न जी लेटे थे।

माता कौशल्या बेटे शत्रुघ्न के सिराहने बैठ गईं, बालों में हाथ फिराया तो शुत्रघ्न की आंखें खुल गईं और मां को देखते ही उनके चरणों में गिर गए। बोले, आपने क्यों कष्ट किया? मुझे बुलवा लिया होता। माता कौशल्या ने पूछा कि शत्रुघ्न, यहां क्यों?
शुत्रघ्न की रुलाई फूट पड़ी, बोले- मां! भैया राम पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्षमण भगवान के पीछे चले गए, भैया भरत भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं? कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं।

यह है रामकथा… यह भोग नहीं, त्याग की कथा है। यहां त्याग की प्रतियोगिता चल रही है और विचित्र और उत्तम बात यह है कि इसमें सभी प्रथम हैं। कोई पीछे नहीं रहा, चारों भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अलौकिक है। इसलिए कहा गया है कि रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती है।

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शिव की पूजा करने वाले भोगते हैं यह श्राप shiv puja, aaj ka rashifal https://indlives.com/shiv-puja-aaj-ka-rashifal/ Wed, 19 Dec 2018 18:04:19 +0000 http://indlives.com/?p=1448

शिव की पूजा करने वाले भोगते हैं यह श्राप shiv puja, aaj ka rashifal shiv puja, aaj ka rashifal दुनियाभर में भोलेनाथ के कई भक्त हैं जो उन्हें खूब मानते हैं. ऐसे में भोलेबाबा को भोलेनाथ इस वजह से कहते हैं क्योंकि वह सभी की मनोकामना जल्द पूरी कर देते हैं. ऐसे में आप सभी […]

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शिव की पूजा करने वाले भोगते हैं यह श्राप shiv puja, aaj ka rashifal

shiv puja, aaj ka rashifal दुनियाभर में भोलेनाथ के कई भक्त हैं जो उन्हें खूब मानते हैं. ऐसे में भोलेबाबा को भोलेनाथ इस वजह से कहते हैं क्योंकि वह सभी की मनोकामना जल्द पूरी कर देते हैं. ऐसे में आप सभी यह भी जानते ही होंगे कि पौराणिक कथा में भी शिव भगवान के कई चमत्कारों का जिक्र है. वहीं उसमे बताया गया है कि जब राजा दक्ष ने विश्व के कल्याण के लिए विशाल यज्ञ का आयोजन किया और वहां भगवान शिव और देवी सती भी थी लेकिन शिव जी ने दक्ष को प्रणाम नहीं किया था और उस वजह से दक्ष क्रोधित हो गए थे और उन्होंने भगवान शिव को श्राप दे दिया था. उन्होंने कहा था कि उन्हें किसी भी यज्ञ का कोई भाग नहीं मिलेगा. shiv puja, aaj ka rashifal

 

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वहीं भगवान शिव के साथ हुई इस घटना से क्रोधित होकर नंदी ने दक्ष को बकरे के सामान शरीर हो जाने का श्राप दे दिया था और इसी के साथ उन्होंने वहां उपस्थित सभी ब्राह्मणों को श्राप दे दिया की सभी ब्राम्हण वृद्ध होते ही अपना समस्त ज्ञान भूल जायेंगे और शेष जीवन दरिद्रता में ही बिताएंगे. इस श्राप को सुनकर भृगु ऋषि भी क्रोधित हो गये और उन्होंने सभी शिव भक्तों को श्राप दे दिया था कि जो भी शिव जी की पूजा या व्रत करेगा वो शास्त्रों के विरुद्ध होंगे और उन्हें भस्म लगाकर, जटा धारण करना होगा.

इस घटना के बाद नन्दी के श्राप से क्रोधित हो भृगु ऋषि ने भी समस्त शिव भक्तों को श्राप दिया कि जो कोई भी शिवजी का व्रत तथा पूजन करेगा, वे सभी वेद-शास्त्रों से विपरीत चलेंगे और जटा धारण कर भस्म मलकर शिव के साधक बनेंगे. वहीं उन्होंने कहा था कि वह मदिरा, मांस खाने वाले होंगे और उनका निवास स्थान श्मशान होगा. इसी कारण अघोरियों को श्मशान में देखा जाता है.

 

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जानिए कैसे हुई बेशकीमती रत्नों की उत्पत्त‍ि Aaj Ka Rashifal https://indlives.com/know-how-origin-prized-gems-aaj-ka-rashifal/ Wed, 19 Dec 2018 17:45:06 +0000 http://indlives.com/?p=1442

जानिए कैसे हुई बेशकीमती रत्नों की उत्पत्त‍ि Aaj Ka Rashifal Aaj Ka Rashifal आचार्य वराहमिहिर ने भी पुराण परंपरा का आश्रय ले आज से 1500 वर्ष पूर्व अपनी वृहतसंहिता में रत्नाध्याय का वर्णन करते हुए रत्नोत्पत्ति के कारणों का वर्णन किया है, परंतु उन्होंने साथ ही ‘केचिद्भुव: स्वभावाद्वैचित्र्यं प्राहुरूपलानाम् (पृथ्वी के स्वभाव ही से कुछ […]

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जानिए कैसे हुई बेशकीमती रत्नों की उत्पत्त‍ि Aaj Ka Rashifal

Aaj Ka Rashifal आचार्य वराहमिहिर ने भी पुराण परंपरा का आश्रय ले आज से 1500 वर्ष पूर्व अपनी वृहतसंहिता में रत्नाध्याय का वर्णन करते हुए रत्नोत्पत्ति के कारणों का वर्णन किया है, परंतु उन्होंने साथ ही ‘केचिद्भुव: स्वभावाद्वैचित्र्यं प्राहुरूपलानाम् (पृथ्वी के स्वभाव ही से कुछ लोगों के मत से रत्नों की विचित्रता हुई है) कहकर अपने ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं ली। Aaj Ka Rashifal

व्रत से मिलता है मोक्ष, भगवान शिव देते हैं वरदान Pradosha vrata, Aaj Ka Rashifa

रत्नानि बलाद्दैत्याद्दैधिचितोन्ये वदंन्ति जातानि।
केचिद् भुव: स्वभावाद्वैचित्र्यं प्राहुरूपलानाम।।
बलि दैत्य और दधीचि की हड्डियों से रत्नों के उत्पन्न होने की बात बताकर पृथ्वी की स्वाभाविक रत्न प्रसव सामर्थ्य की चर्चा भी की है।
हीरे – उन्होंने कहा है कि जब बलि दैत्य की अस्थियां इधर-उधर उड़कर गिरीं तब वे जहां गिरीं उस प्रदेश में इंद्रधनुष को चकाचौंध कर देने वाले विचित्र हीरे उत्पन्न हो गए।
मोती – उसकी दंतपंक्तियां नक्षत्र-मालिका की तरह आकाश तक फैली थीं, जो समुद्र आदि स्थानों में जा पड़ीं वे ‘मोती’ रूप में परिवर्तित हो गईं।
माणिक्य – सूर्य के खर-किरण से उसका जमीन पर गिरा हुआ रक्त सूखकर रजों द्वारा गगनगामी हो रहा था, पर रावण ने उसे राह में ही रोककर सिंहल द्वीप की उस नदी में डाल दिया, जहां सुपारी के पेड़ लगे हैं। तभी से उस नदी का नाम ‘रावण गंगा’ भी हो गया और उसमें पद्मराग-माणिक्य उत्पन्न होने लगे।
पन्ना –
नागराज वासुकी उस दैत्य के पितरों को लेकर आकाश पथ से जा रहे थे कि मार्ग में गरूड़ ने हमला बोल दिया। विवश हो उन्हें तुरूष्क की कलियों की सुरभि से व्याप्त माणिक्य गिरि की उपत्यका में उसे डाल देना पड़ा। वहां पन्ना की खदानें हो गईं।
लहसुनिया – सिंहल रमणियों के करपल्लव के अग्रभाग की तरह विस्तार पाने वाली सागर की तटवर्ती भूमि पर असुर के नीलनयन गिर गए। उनसे इंद्रनील मणि की उत्पत्ति हुई और मरने के समय असुर की घनघोर गर्जना से गई रंगों के वैदुर्य (लहसुनिया) उत्पन्न हुए।
पुखराज – चर्म के हिमालय पर गिर जाने से पुखराज की उत्पत्ति हुई और नाखूनों के कमलधन में पड़ जाने से कर्केत (वैक्रांत) का जन्म हुआ।
गोमेद – राक्षस के वीर्य, जो ह‍मि पर्वत के उत्तर भाग में गिरा था, से गोमेद उत्पन्न हुआ और उत्तरावर्त की जिन नदियों और प्रदेशों में अन्य अंग के अंश गिरते गए, वहां गुंजा, सुरमा, मधु, कमलनाल, वर्ण के गंधर्व, अग्नि तता केले की तरह वर्ण वाले, दीप्तिमय, पुलक, प्रकाश मान कई रत्न बन गए।
मूंगा – अग्नि ने असुर के रूप को नर्मदा में ले जाकर डाल दिया था इसलिए उसमें रुधिराक्ष (अकील) रत्न बनने लगे तथा आंतों से प्रवाल विद्रुम (मूंगे) की उत्पत्ति हुई।
स्फटि‍क – उसी असुर की चर्बी जहां-जहां कावेरी, विंध्य, पवन, चीन नेपाल आदि देशों में पहुंची वहां स्फटिक आदि की खदानें बनीं।
इस प्रकार पुराण के ‘असुर-अंग’ को हम अलग भी कर दें, तब भी उसके अंग-निर्दोष की भूमि जलाशय आदि का जो संकेत हमें मिलता है, वह उन रत्नों की जन्मभूमि के परिज्ञान-पर्यवेक्षण के लिए पर्याप्त हो सकता है। अंगों के रूप-लक्षण प्रकृति साम्य पर भी परिक्षीलन करने वाले प्रवीण पुरुषों को कोई तथ्य प्राप्त हो जाए तो विस्मय का कारण नहीं।
पौराणिक कथा के रूप में यह मान लेने की आवश्यकता नहीं कि वह मानव (असुर) अंग के द्वारा ही पदार्थोत्पादन-सूचना है। किंतु सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाए तो जिन-जिन रत्नों की उत्पत्ति जिन-जिन अंगों से सूचित की है उन रत्नों को प्रकृति साधर्म्य के लिए तथा उसके उन-उन अंगों के उपयोग के औचित्य की पुष्टि से भी वस्तुस्थिति पर प्रकाश पड़ता है।
पुराण न तो विज्ञान के ग्रंथ हैं, न उपचार के। वे ऐतिहासिक तथ्यों के आध्यात्मिक एवं सामाजिक भावनाओं के कथा-रूप में सुंदर हृदयग्राही चि‍त्र हैं जिनसे सर्वसाधारण को अनुप्रेरणा मिलती है। उनमें समस्त ज्ञान, व्यापक रूप से विभिन्न स्थलों में (अपने विशेष दृष्टिकोण से ही) निहित है।
रत्नों की उत्पत्ति, उपयोगिता तथा गुण-दोषों का विवेचन यद्यपि पुराणों में स्वतंत्र रूप से नहीं है तो भी उनकी अपनी लाक्षणिक वर्णन शैली में वह तथ्य अवश्य उपलब्ध हो सकता है, जो विवेचक के विज्ञान के लिए अपेक्षित है।

रत्नों द्वारा रोग का उपचार,स्वास्थ्य के लिए रत्न,बाये हाथ में रत्न पहनने का फल,किस बीमारी में कौन सा स्टोन पहने,

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अपनी बेटी पर मोहित हो गए थे ब्रह्माजी, मिला था यह श्राप! Aaj Ka Rashifal https://indlives.com/brahma-got-fascinated-daughter-curse-aaj-ka-rashifal/ Tue, 18 Dec 2018 18:54:40 +0000 http://indlives.com/?p=1409 अपनी बेटी पर मोहित हो गए थे ब्रह्माजी, मिला था यह श्राप! Aaj Ka Rashifal Aaj Ka Rashifal आप सभी को बता दें कि हिंदू ग्रंथों और पुराणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सृष्टि का निर्माता, पालनकर्ता और संहारक माने जाते हैं लेकिन कई लोगों के मन में ये सवाल आता है कि […]

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अपनी बेटी पर मोहित हो गए थे ब्रह्माजी, मिला था यह श्राप! Aaj Ka Rashifal

Aaj Ka Rashifal आप सभी को बता दें कि हिंदू ग्रंथों और पुराणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सृष्टि का निर्माता, पालनकर्ता और संहारक माने जाते हैं लेकिन कई लोगों के मन में ये सवाल आता है कि विष्णु और महेश (शिव जी) के तो दुनियाभर में कई मंदिर हैं वहीं लोग घर में भी इनकी स्थापना कर इनकी पूजा करते हैं लेकिन ब्रह्मा की पूजा कभी नहीं की जाती आखिर क्यों..?Aaj Ka Rashifal

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Aaj Ka Rashifal
आप सभी को बता दें कि उनका केवल एक ही मंदिर है, जो पुष्कर में है. इसी के साथ आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर क्यों उनकी पूजा नहीं की जाती है. जी दरअसल इससे एक कहानी जुडी हुई है जो इस प्रकार है. क्या है कहानी..? कहानी की मानें तो सरस्वती जी ब्रह्मा जी की बेटी थीं और ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद सरस्वती जी को अपने तेज से उत्पन्न किया था इस वजह से कहते हैं कि सरस्वती जी की कोई मां नहीं थी. वहीं सरस्वती जी को विद्या की देवी कहा जाता है और कहानी के अनुसार सरस्वती माता बहुत ही खूबसूरत और आकर्षक थीं इस कारण स्वयं ब्रम्हा जी उनकी ओर आकर्षित हो गए और उनके मन में सरस्वती माता से विवाह करने का विचार आ गया था. उनकी इस इच्छा को सरस्वती माता जान गई थीं और वो अपने पिता से विवाह नहीं करना चाहती थीं.

ऐसे में वह ब्रम्हा जी की नजरों से बचने का प्रयास करने लगीं लेकिन उनके ये सभी प्रयास असफल रहे और वह उनकी नजरों में रहीं. काफी प्रयासों के असफल होने के बाद अंत में सरस्वती जी को ब्रह्मा से विवाह करना पड़ा. वहीं ऐसा कहते हैं कि इससे देवलोक में उनकी बहुत आलोचना हुई और यही कारण है कि ब्रह्मा जी की पूजा नहीं की जाती. इसी के साथ सरस्वती पुराण में बताया गया है कि ब्रम्हा और सरस्वती ने 100 साल तक जंगल में पति-पत्नी के रूप में बिताया और इसी बीच ब्रम्हा और सरस्वती में प्रेम बना रहा और इन दोनों का एक पुत्र भी हुआ.

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जानिए मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा , Mokshada Ekadashi, Aaj Ka Rashifal https://indlives.com/mokshada-ekadashi-vrat-katha-aaj-ka-rashifal/ Tue, 18 Dec 2018 18:28:09 +0000 http://indlives.com/?p=1399

जानिए मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा , Mokshada Ekadashi, Aaj Ka Rashifal Mokshada Ekadashi, Aaj Ka Rashifal कहते हैं मोक्षदा एकादशी को अगर व्रत विधि पूर्वक किया जाए तो मनुष्य के सभी बुरे दोष खत्म हो जाते हैं और उसे जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस साल मोक्षदा एकदशी व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल […]

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जानिए मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा , Mokshada Ekadashi, Aaj Ka Rashifal

Mokshada Ekadashi, Aaj Ka Rashifal कहते हैं मोक्षदा एकादशी को अगर व्रत विधि पूर्वक किया जाए तो मनुष्य के सभी बुरे दोष खत्म हो जाते हैं और उसे जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस साल मोक्षदा एकदशी व्रत मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी 18 दिसंबर 2018 मंगलवार को है. तो आइए जानते हैं इसकी व्रत कथा जिसे पढ़ने से बहुत लाभ मिलता है. Mokshada Ekadashi, Aaj Ka Rashifal

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Mokshada Ekadashi, Aaj Ka Rashifal
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा- प्राचीन गोकुल नगर में वैखानस नामक एक राजा था. उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्माण रहते थे. एक रात स्वप्न में राजा को अपने पिता को नर्क में पड़ा देख बहुत दु:ख हुआ. उसने अपने स्वप्न की बात ब्राह्मणों से कहते हुए पिता को मुक्ति दिलाने का उपाय बताने को कहा. राजा की बात सुन ब्राह्मणों ने भूत-भविष्य के ज्ञाता “पर्वत” नाम के मुनि के पास जाने को कहा. राजा मुनि के आश्रम पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके सारी बात बताई.

राजा की बात सुनकर मुनि ने आंखे बंद कर ली और कुछ देर बाद कहा कि आपके पिता ने अपने पिछले जन्म में एक बुरा कर्म किया था और उसी पाप कर्म के फल से वे नर्क में गए है. यह सुन राजा ने ऋषि से अपने पिता का उद्धार करने की प्रार्थना की. राजा की विनती पर ऋषि ने कहा कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास करने से उनके पिता को मुक्ति मिलेगी. इसके बाद राजा ने अपने परिवार सहित मोक्षदा एकादशी का उपवास किया और उस उपवास के पुण्य को राजा ने अपने पिता को दे दिया. उस पुण्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई.

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साईं बाबा के जीवन का जानिए रहस्य aaj ka rashifal, Know the Sai Baba Life https://indlives.com/aaj-ka-rashifal-know-sai-baba-life/ Sun, 09 Dec 2018 15:11:24 +0000 http://indlives.com/?p=1273

साईं बाबा के जीवन का जानिए रहस्य aaj ka rashifal, Know the Sai Baba Life Know the Sai Baba Life बचपन में मां-बाप मर गए तो सांईं और उनके भाई अनाथ हो गए। फिर सांईं को एक वली फकीर ले गए। बाद में वे जब अपने घर पुन: लौटे तो उनकी पड़ोसन चांद बी ने […]

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साईं बाबा के जीवन का जानिए रहस्य aaj ka rashifal, Know the Sai Baba Life

Know the Sai Baba Life बचपन में मां-बाप मर गए तो सांईं और उनके भाई अनाथ हो गए। फिर सांईं को एक वली फकीर ले गए। बाद में वे जब अपने घर पुन: लौटे तो उनकी पड़ोसन चांद बी ने उन्हें भोजन दिया और वे उन्हें लेकर वैंकुशा के आश्रम ले गईं और वहीं छोड़ आईं। Know the Sai Baba Life

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बाबा के पास उनका खुद का कुछ भी नहीं था। न सटका, न कफनी, न कुर्ता, न ईंट, न भिक्षा पात्र, न मस्जिद और न रुपए-पैसे। बाबा के पास जो भी था वह सब दूसरों का दिया हुआ था। दूसरों के दिए हुए को वे वहीं दान भी कर देते थे। वे जो भिक्षा मांगकर लाते थे वह अपने कुत्ते और पक्षियों के लिए लाते थे। बाबा ने जीवनभर एक ही कुर्ता या कहें कि चोगा पहनकर रखा, जो दो जगहों से फट गया था। उसे आज भी आप शिर्डी में देख सकते हैं।साईं का सटका : कहते हैं कि बाबा को यह सटका तब मिला था जबकि वे अयोध्या में थे। अयोध्या पहुंचने पर नाथ पंथ के एक बड़े पहुंचे हुए संत ने उन्हें गौर से देखा और कुछ देर तक देखते ही रहे। बाद में वे बाबा को सरयू ले गए और वहां स्नान कराया और उनको एक चिमटा (सटाका) भेंट किया। यह नाथ संप्रदाय का हर योगी अपने पास रखता है। फिर नाथ संत प्रमुख ने उनके कपाल पर चंदन का तिलक लगाकर कहा कि ‘बेटा, तू इसे हर समय अपने कपाल पर धारण करके रखना। जीवनपर्यंत बाबा ने तिलक धारण करके रखा लेकिन सटाका उन्होंने मरने से पहले हाजी बाबा को भेंट कर दिया था।’

साईं की ईंट और कफनी : बाबा के गुरु वैकुंशा उनको अपनी संपूर्ण शक्ति देने के लिए एक दिन जंगल ले गए जहां उन्होंने पंचाग्नि तपस्या की। वहां से लौटते वक्त कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोग हरिबाबू (सांईं बाबा) पर ईंट-पत्थर फेंकने लगे।हरिबाबू मतलब बाबा को बचाने के लिए वैंकुशा सामने आ गए तो उनके सिर पर एक ईंट लगी। वैंकुशा के सिर से खून निकलने लगा। बाबा ने तुरंत ही कपड़े से उस खून को साफ किया। वैंकुशा ने वही कपड़ा बाबा के सिर पर 3 लपेटे लेकर बांध दिया और कहा कि ये 3 लपेटे संसार से मुक्त होने और ज्ञान व सुरक्षा के हैं। जिस ईंट से चोट लगी थी बाबा ने उसे उठाकर अपनी झोली में रख लिया।…इसके बाद बाबा ने जीवनभर इस ईंट को ही अपना सिरहाना बनाए रखा। जब बाबा के भक्त माधव फासले से यह ईंट टूट गई थी तो बाबा ने कहा था कि बस अब मेरा अंतिम वक्त आ गया है।

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हनुमानजी को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय Aaj ka Rashifal, How to please Hanumanji https://indlives.com/how-to-please-hanumanji-aaj-ka-rashifal/ Sun, 09 Dec 2018 15:02:57 +0000 http://indlives.com/?p=1270

हनुमानजी को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय, Aaj ka Rashifal,हनुमानजी को प्रसन्न कैसे करें, How to please Hanumanji Aaj ka Rashifal धर्म ग्रंथों के अनुसार, हनुमानजी को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय हनुमान चालीसा का पाठ करना है। जो व्यक्ति रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना है, उसकी इच्छा शक्ति भी बहुत मजबूत होती […]

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हनुमानजी को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय, Aaj ka Rashifal,हनुमानजी को प्रसन्न कैसे करें, How to please Hanumanji

Aaj ka Rashifal धर्म ग्रंथों के अनुसार, हनुमानजी को प्रसन्न करने का सबसे सरल उपाय हनुमान चालीसा का पाठ करना है। जो व्यक्ति रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना है, उसकी इच्छा शक्ति भी बहुत मजबूत होती है। Aaj ka Rashifal

How to please Hanumanji

जाने क्यों नही ब्रह्मा जी की पूजा होती Aaj Ka Rashifal

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, हनुमान चालीसा का पाठ करने की विधि बहुत आसान है, लेकिन कुछ लोग जानकारी के अभाव में कुछ गलतियां करते हैं। जानिए हनुमान चालीसा का पाठ करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए…

कुछ लोग नहाने के तुरंत बाद सिर्फ टॉवेल लपेटकर और भीगे शरीर से ही हनुमान चालीसा का पाठ करने बैठ जाते हैं। ये गलत तरीका है। जबकि सुबह स्नान आदि करने के बाद लाल धोती पहनकर हनुमानजी के चित्र या मूर्ति के सामने बैठकर नियमपूर्वक हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।

2. कई बार लोग अस्वच्छ अवस्था (गंदे कपड़ों और रजस्वला स्त्री के स्पर्श के बाद) में ही हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। ऐसी गलतियां करने से बचना चाहिए।

3. हनुमान चालीसा का पाठ करते समय बैठने के लिए ऊनी या कुशा के आसन का उपयोग करना चाहिए। अन्य आसन का उपयोग करने से पूजा का पूरा फल नहीं मिल पाता।

4. हनुमान चालीसा का पाठ करते समय ध्यान सिर्फ ईश्वर भक्ति में ही लगा होना चाहिए। इधर-ऊधर की बातें सोचने से बचना चाहिए।

5. जिस स्थान पर हनुमान चालीसा का पाठ करें, वो जगह ही साफ-स्वच्छ होनी चाहिए। नहीं तो पूजा का पूरा फल नही मिल पाता।

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श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया Ajj Ka Rashifal https://indlives.com/krishna-defeated-rukmini/ Sun, 09 Dec 2018 14:24:30 +0000 http://indlives.com/?p=1268 श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया Ajj Ka Rashifal Krishna defeated Rukmini Ajj Ka Rashifal जब नई बहू घर आए तो उसके साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिए कि उसका मन कम समय में ही पति के परिवार को अपना मान ले। श्रीमद् भागवत के एक प्रसंग से हम ये बात समझ सकते हैं कि नई बहु […]

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श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया Ajj Ka Rashifal Krishna defeated Rukmini

Ajj Ka Rashifal जब नई बहू घर आए तो उसके साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिए कि उसका मन कम समय में ही पति के परिवार को अपना मान ले। श्रीमद् भागवत के एक प्रसंग से हम ये बात समझ सकते हैं कि नई बहु के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया और उसके भाई रुक्मी को आधा गंजा करके आधी मूंछ काट दी, भाई की ऐसी दशा से वह दुखी थी, नई बहु राज महल पहुंची तो बलराम ने उसे कही एक बात, जिससे रुक्मिणी का दुख दूर हुआ

# भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया तो रुक्मिणी के भाई रुक्मी ने उनका पीछा किया और श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए आमंत्रित किया। श्रीकृष्ण ने रुक्मी से घमासान युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया।

# जब भगवान रुक्मी को मारने लगे तब रुक्मिणी ने उन्हें रोक दिया और अपने भाई की जान बचा ली। फिर भी श्रीकृष्ण ने उसे आधा गंजा करके और आधी मूंछ काटकर कुरूप कर दिया।

# रुक्मिणी इस पर कुछ नहीं बोली, लेकिन वो उदास हो गई। जब रुक्मिणी श्रीकृष्ण के साथ उनके राज महल में पहुंची तो बलराम ने रुक्मिणी के मन के भाव समझ लिए।

# बलराम ने श्रीकृष्ण को समझाया कि रुक्मी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना था। वो तुम्हारी पत्नी का भाई है, रिश्तेदार है।

# बलराम ने रुक्मिणी से हाथ जोड़कर माफी मांगी। उन्होंने रुक्मिणी से कहा कि तुम्हारा भाई हमारे लिए आदरणीय है और श्रीकृष्ण द्वारा किए गए व्यवहार के लिए मैं क्षमा मांगता हूं। तुम उस बात के लिए अपना दुखी मत होना। ये परिवार अब तुम्हारा भी है, इसे पराया मत समझना। तुम्हारे भाई के साथ हुए दुर्व्यवहार के लिए मैं तुमसे माफी मांगता हूं।

# इस बात से रुक्मिणी का दुख दूर हो गया। जल्दी ही रुक्मिणी यदुवंश में घुल-मिल कर रहने लगी और उसी परिवार को अपना सबकुछ मान लिया। नई बहू को जिम्मेदारी दें, लेकिन उनसे सिर्फ अपेक्षाएं ही न रखी जाएं, उन्हें आदर-सम्मान और अपनापन भी दिया जाना चाहिए।

# नई बहू के आते ही अपने घर के अनुशासन में भी थोड़ा बदलाव करना चाहिए, जिससे कि वह अपने आप को नए माहौल में ढाल सके।

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