Punjab की रणजीत सागर झील में जल्दी ही विदेशों की तरह जल बसें चलती नजर आएंगी। पंजाब सरकार ने लगभग आठ साल बाद इन बसों को फिर से चलाने की रणनीति बनाई है। बसों के फिटनेस सर्टिफिकेट प्राप्त करने की प्रक्रिया चल रही है, और इसका उद्देश्य राज्य में टूरिज्म को बढ़ावा देना और रोजगार के नए अवसर पैदा करना है। पहले जब यह बसें चलाई गई थीं, तो यह प्रोजेक्ट देश में अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट था।
जल बसों को चलाने की रणनीति
कुछ दिन पहले Punjab सरकार के टूरिज्म डिपार्टमेंट ने जल बसों को लेकर बैठक की थी, जिसमें यह सामने आया कि करोड़ों की लागत से खरीदी गई बसें अब बेकार हो रही थीं। इसके बाद इन बसों को चलाने के लिए रणनीति बनाई गई और हरिके वेटलैंड में खड़ी इन बसों की चेकिंग भी करवाई गई।
ट्रांसपोर्ट विभाग ने इनकी जरूरी मरम्मत और फिटनेस सर्टिफिकेट देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके अलावा, बसों के संचालन के लिए वन विभाग से भी सलाह ली गई है, और अब पर्यावरण मंजूरी (एन्वायर्नमेंट क्लीयरेंस) का इंतजार किया जा रहा है। उम्मीद है कि जल्द ही लोग इन जल बसों का आनंद ले सकेंगे।
पिछले प्रोजेक्ट का इतिहास
यह जल बसें अकाली-भा.ज.पा. सरकार के दौरान 2016 में खरीदी गई थीं, और तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में पहचानी जाती थीं। करीब साढ़े चार करोड़ रुपये की लागत से इन बसों को निजी कंपनी से खरीदी गई थी। पहले इन बसों को हरिके वेटलैंड में चलाया गया था, और कुल 9 करोड़ रुपये की लागत वाला यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया था।
हालांकि, इन बसों का संचालन केवल दस दिनों तक ही चल सका। जब कांग्रेस सरकार सत्ता में आई, तो तत्कालीन मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने इन बसों को नीलाम करने की बात की थी और कश्मीर की तर्ज पर शिकारे चलाने का प्रस्ताव रखा था। इसके बाद यह बसें गैराज में रख दी गई थीं। अब वर्तमान सरकार ने इस प्रोजेक्ट का पुनरावलोकन किया है और जल बसों को दोबारा चलाने की योजना बनाई है।
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