खीर भवानी मंदिर से जुडी रौचक जानकारी Kheer Bhawani Mandir ajab gajab
ajab gajab यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला के कारण नहीं बल्कि पीठासीन भगवान को खीर अर्पित करने की असामान्य परंपरा के लिए प्रसिद्ध हैं. श्रीनगर जिले के तुल्लामुला में स्थित खीर भवानी मंदिर हिंदुओं में एक अत्यंत प्रतिष्ठित मंदिर है. इस स्थान पर बसों और टैक्सियों द्वारा श्रीनगर से मंदिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता हैं. चिनार के पेड़ों से घिरे सुरम्य वातावरण के बीच खीर भवानी मंदिर स्थित है.
हनुमान जी ने मूर्ति स्थानांतरित की थी
खीर भवानी मंदिर रागनी देवी (देवी दुर्गा का रूप) को समर्पित है. हिन्दू पौराणिक महाग्रंथो के अनुसार रावण देवी रागिनी का परम भक्त था और उसी ने देवी की स्थापना श्रीलंका में की थी. परन्तु देवी रागिनी रावण के बुरे कर्मों से रूठ गई थी. भगवान राम ने अपने निर्वासन की अवधि के लिए देवी रागनी की पूजा की थी. जब वनवास की अवधि पूरी हो गई, तो भगवान राम ने भगवान हनुमान को देवी के मंदिर को स्थानांतरित करने के लिए कहा. भगवान हनुमान ने देवी के मंदिर को तुल्लामुला में स्थानांतरित कर दिया. ajab gajab
एक अन्य कथा के अनुसार रागनी देवी रघुनाथ गाड्रो नाम के एक पुजारी के सपने में दिखाई दीं और उन्हें अपने धर्मस्थल को वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए कहा. इसके बाद मंदिर को तुल्लामुला गाँव में स्थानांतरित कर दिया गया. मूल मंदिर का निर्माण महाराणा प्रताप सिंह ने 1912 में करवाया था. बाद में इसका जीर्णोद्धार महाराजा हरि सिंह ने करवाया. मंदिर परिसर में सफेद संगमरमर में बने छोटे से मंदिर में रागनी देवी की एक प्रतिमा रखी गई हैं.
आपदा आने पर काला हो जाता है कुंड का पानी
देवी रागनी को एक प्राकृतिक षटकोणीय वसंत के रूप में दर्शाया गया है जो भक्तों द्वारा अभिनीत है. रागनी देवी के मंदिर को लोकप्रिय रूप से खीर भवानी मंदिर के रूप में जाना जाता है. इस तथ्य के कारण कि श्रद्धालु वसंत ऋतु में ‘खीर’ (दूध से बनी मीठा व्यंजन) प्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं. यह भी माना जाता हैं कि मंदिर में उपस्थित कुंड का जल काले रंग में बदल जाता है, जो आने वाली आपदा के बारे संकेत देता है.
खीर भवानी मंदिर मेला और उत्सव
मंदिर में शुक्ल पक्ष अष्टमी के अवसर पर एक वार्षिक उत्सव मनाया जाता हैं. इस विशेष दिन भक्त उपवास रखते हैं और देवी की पूजा- अर्चना के लिए मंदिर में इकट्ठा होते हैं. इसी तरह ज्येष्ठ अष्टमी (मई-जून) में लोग देवी के दर्शन के लिए आते हैं. रागनी देवी को प्रसन्न करने के लिए ‘महा यज्ञ’ के साथ त्यौहार का समापन होता हैं.
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