Janmashtami Date 2020: मोहरात्रि जन्माष्टमी, जानिए महत्व, पूजा विधि और कथा

janmashtami history

Janmashtami Date 2020: मोहरात्रि जन्माष्टमी, जानिए महत्व, पूजा विधि और कथा

janmashtami date 2020: moharatri janmashtami, Janaye mahatav, pooja vidhi aur katha

हर वर्ष भादों माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर और रोहिणी नक्षत्र में Krishna जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 12 अगस्त को है। जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ा है ,धर्म का पतन हुआ है तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म  की स्थापना की है। भगवान का अवतार मानव के आरोहण के लिए होता है। जगत की रक्षा, दुष्टों का संहार तथा धर्म की पुर्नस्थापना ही प्रत्येक अवतार का उद्देश्य होता है। अवतार का अर्थ अव्यक्त रूप से व्यक्त रूप में प्रादुर्भाव होना है। shree krishna परम पुरुषोत्तम भगवान का जन्म भाद्रपद की अष्ठमी तिथि  (रोहिणी नक्षत्र और चन्द्रमा वृषभ राशि में ) को मध्यरात्रि में हुआ। उनके जन्म लेते ही दिशाएं स्वच्छ व प्रसन्न एवं समस्त पृथ्वी मंगलमय हो गई थी। विष्णु के अवतार shree Krishna के प्रकट होते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया।

वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पद्मधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा-अब मैं बालक का रूप धारण करता हूँ, तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहां पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो। तभी वासुदेवजी की हथकड़ियां खुल गयीं, दरवाज़े अपने आप खुल गए व पहरेदार सो गए। वासुदेव shree Krishna को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए। रास्ते में यमुना shree Krishna के चरणों को स्पर्श करने के लिए ऊपर बढ़ने लगीं।
भगवान ने अपने shree चरण लटका दिए और चरण छूने के बाद यमुनाजी घट गयीं। बालक Krishna को यशोदाजी के बगल में सुलाकर कन्या को वापस लेकर वासुदेव कंस के कारागार में वापस आ गए। कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटककर मारना चाहा परंतु वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली-हे कंस! मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुँच चुका है। यह देखकर कंस हतप्रद और व्याकुल हो गया। कृष्ण के प्राकट्य से स्वर्ग में देवताओं की दुन्दुभियाँ अपने आप बज उठीं तथा सिद्ध और चारण भगवान के मंगलमय गुणों की स्तुति करने लगे।

अज्ञान को दूर करते हैं shree Krishna
Krishna एक ऐसा अवतार जिसके दर्शन मात्र से प्राणियों के, घट-घट के संताप , दुःख मिट जाते हैं। shree Krishna ने गोकुल और वृन्दावन में मधुर-मुरली के मोहक स्वर में व कुरुक्षेत्र में (गीता रूप में) सृजनशील जीवन का वह सन्देश सुनाया जो नाम-रूप , रूढ़ि तथा साम्प्रदायिकता से परे है। अर्जुन जब नैराश्य में डूब गए तो उन्हें shree Krishna ने अर्जुन के अज्ञान को दूर कर ऐसा ज्ञान दिया कि वे उठ खड़े हुए। कोई भी व्यक्ति जब निराश होता है, तो गीताज्ञान उसे नैराश्य से उबरने की शक्ति देता है।

जन्माष्टमी है मोहरात्रि
हमारे धर्मशास्त्रों में चार रात्रियों का विशेष महत्त्व बताया गया है। दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है। शिवरात्रि महारात्रि है। होली अहोरात्रि है तो Krishna जन्माष्ठमी को मोहरात्रि कहा गया है। जिनके जन्म के संयोग मात्र से बंदीगृह के सभी बंधन स्वतः ही खुल गए ,सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए , माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठीं , ऐसे भगवान shree Krishna को मोह लेने वाला अवतार माना गया है। इस रात में योगेश्वर shree Krishna का ध्यान, नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से आसक्ति  हटती है।

निष्काम कर्म करना सिखाते हैं shree Krishna
भगवान shree Krishna का जीवन दर्शन हमें निष्काम कर्म की प्रेरणा देता है।निष्काम कर्म करने से व्यक्ति सभी प्रकार के दुःख,कष्ट तथा क्लेशों से छुटकारा प्राप्त कर लेता है। भगवान shree Krishna का चरित्र मानव को धर्म , प्रेम, करुणा, ज्ञान, त्याग, साहस व कर्तव्य के प्रति प्रेरित करता है। उनकी भक्ति मानव को जीवन की पूर्णता की ओर ले जाती है।

व्रत का महत्त्व और पूजा विधि
जन्माष्ठमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। भविष्य पुराण में इस व्रत के सन्दर्भ में उल्लेख है कि जिस घर में यह देवकी-व्रत किया जाता है वहां अकाल मृत्यु,गर्भपात,वैधव्य,दुर्भाग्य तथा कलह नहीं होती। जो एक बार भी इस व्रत को करता है वह संसार के सभी सुखों को भोगकर विष्णुलोक में निवास करता है।

पूजन विधि
जन्माष्ठमी केदिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके व्रत का संकल्प लें। माता देवकी और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें। पूजन में देवकी,वासुदेव,बलदेव,नन्द, यशोदा आदि देवताओं के नाम जपें। रात्रि में 12  बजे के बाद श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। पंचामृत से अभिषेक कराकर भगवान को नए वस्त्र अर्पित करें एवं लड्डू गोपाल को झूला झुलाएं। पंचामृत में तुलसी डालकर माखन-मिश्री व धनिये की पंजीरी का भोग लगाएं तत्पश्चात आरती करके प्रसाद को भक्तजनों में वितरित करें।

पूरे भारतवर्ष में श्री कृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में समस्त मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं। छोटी काशी के रूप में दुनियाभर में अपनी विशिष्ठ पहचान रखने वाली गुलाबीनगरी जयपुर में श्री कृष्ण का जन्मोत्सव पूरी भव्यता के साथ मनाया जाता है। शहर के आराध्य गोविंददेवजी के मंदिर में तो इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। रात के12 बजे यहाँ जन्माभिषेक कराया जाता है।  भगवान के जन्म, के समय तोपों की सलामी दी जाती है। सारा कार्य महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सानिध्य में किया जाता है। दूसरे दिन नंदोत्सव के बाद मंदिर से भगवान की भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। महोत्सव के तहत मंदिर परिसर में शहनाई वादन और भजन -कीर्तन चलते रहते हैं ।बड़ी संख्या में व्रत करने वाले श्रद्धालु मध्यरात्रि कृष्ण जन्म के बाद  पंचामृत-पंजीरी का प्रसाद लेकर अपना व्रत खोलते हैं । सारा वातावरण गोविन्द की भक्ति के रंग में डूबा हुआ नज़र आता है।

Revolutionary Performance: Unveiling the 2021 Model S Lamborghini Revuelto Price & Features Rolex Sky-Dweller 2023 New Watches The Cheapest Tesla Car Model Milgrain Marquise and Dot Diamond Wedding Ring in 14k white Gold