श्रावण मास (Shravan month) में शिवजी को ऐसे करें प्रसन्न DharmTips

श्रावण मास (Shravan month) में शिवजी को ऐसे करें प्रसन्न DharmTips

श्रावण मास (Shravan month) भगवान शिवजी का प्रिय मास है और शिवजी को अपने भक्तों से बहुत स्नेह रहता है। वह तो नीलकंठ हैं जोकि विष को अपने कंठ में रख लेते हैं और अमृत अन्यों को दे देते हैं, शिवजी तो मात्र एक लोटे जल से प्रसन्न हो जाने वाले भगवान हैं और यदि श्रावण मास  (Shravan month) में उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करेंगे तो निश्चित ही सफल होंगे। देखा जाये तो श्रावण अथवा सावन हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवां महीना होता है जोकि ईस्वी कैलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। इस साल श्रावण मास  (Shravan month) 6 जुलाई से शुरू हो रहा है जोकि सोमवार का दिन है। श्रावण की शिवरात्रि इस बार 11 जुलाई रविवार को पड़ रही है। श्रावण माह का समापन अगस्त में रक्षाबंधन के दिन होगा और उस दिन भी सोमवार ही है।

श्रावण माह के त्योहार

इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें ‘हरियाली तीज’, ‘रक्षा बन्धन’, ‘नाग पंचमी’ आदि प्रमुख हैं। इस मास में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार “सावन के सोमवार” कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियां तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियां भगवान शिव के निमित्त व्रत रखती हैं। मान्यता है कि सावन के सोमवार का व्रत रखने वाली लड़कियों को मनचाहा वर और महिलाओं को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

कोरोना से पड़ा असर

श्रावण मास  (Shravan month) में देश के विभिन्न भागों में कांवड़ मेले भी लगते हैं लेकिन इस बार कोरोना वायरस संक्रमण के कारण इन आयोजनों पर रोक है जिससे सड़कों पर वह रौनक नहीं देखने को मिलेगी जो अब तक मिलती रही है। इसके अलावा मंदिरों में भी चूँकि एक बार में पाँच लोग ही अंदर जा सकते हैं ऐसे में लोगों की संख्या कम ही रहने की उम्मीद है वरना तो सावन के सोमवारों को शिवालयों में दूर-दूर तक लाइनें लग जाती हैं।

शिवजी का पूजन ऐसे करें

श्रद्धालु इस पूरे मास शिवजी के निमित्त व्रत और प्रतिदिन उनकी विशेष पूजा आराधना करते हैं। शिवजी की पूजा में गंगाजल के उपयोग को विशिष्ट माना जाता है। शिवजी की पूजा आराधना करते समय उनके पूरे परिवार अर्थात् शिवलिंग, माता पार्वती, कार्तिकेयजी, गणेशजी और उनके वाहन नन्दी की संयुक्त रूप से पूजा की जानी चाहिए। शिवजी के स्नान के लिए गंगाजल का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा कुछ लोग भांग घोंटकर भी चढ़ाते हैं। शिवजी की पूजा में लगने वाली सामग्री में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, कलावा, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दूर्वा, फल, विजिया, आक, धूतूरा, कमल−गट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप का इस्तेमाल किया जाता है।

श्रावण मास (Shravan month) के प्रथम सोमवार से इस व्रत को शुरू किया जाता है। प्रत्येक सोमवार को गणेशजी, शिवजी, पार्वतीजी की पूजा की जाती है। इस सोमवार व्रत से पुत्रहीन पुत्रवान और निर्धन धर्मवान होते हैं। स्त्री अगर यह व्रत करती है, तो उसके पति की शिवजी रक्षा करते हैं। सोमवार का व्रत साधारणतया दिन के तीसरे पहर तक होता है। इस व्रत में फलाहार या पारण का कोई खास नियम नहीं है, किंतु आवश्यक है कि दिन−रात में केवल एक ही समय भोजन करें। सोमवार के व्रत में शिव−पार्वती का पूजन करना चाहिए।

सावन पर मंदिरों में दिखती है अलग ही छटा

श्रावण मास (Shravan month) में देश भर के शिवालयों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है तथा बम-बम भोले से मंदिर गुंजायमान होने लगते हैं। माना जाता है कि श्रावण माह में एक बिल्वपत्र शिव को चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। इस मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है। इससे सभी प्रकार के कष्‍ट दूर होते हैं तथा मनुष्य अपने बुरे कर्मों से मुक्ति पा सकता है। ऐसी मान्यता है कि भारत की पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किए जाने से शिव प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। इसलिए श्रद्धालुगण कांवडिये के रूप में पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। माना जाता है कि पहला ‘कांवडिया’ रावण था। श्रीराम ने भी भगवान शिव को कांवड चढ़ाई थी।

इस मास के बारे में यह भी माना जाता है कि इस दौरान भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। इसके अलावा पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की, लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास (Shravan month) में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ‘शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं।

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