Haryana में बढ़ते भूजल संकट, कैंसर और किडनी रोगों का खतरा

Haryana में भूजल संकट एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। भूजल का स्तर तेजी से गिरने के साथ-साथ इसमें भारी धातुएं तय मानकों से दोगुनी मात्रा में पाई जा रही हैं। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा के भूजल में आर्सेनिक, यूरेनियम, फ्लोराइड, नाइट्रेट और आयरन जैसे खतरनाक तत्व तय सीमा से कहीं अधिक पाए गए हैं। इनकी अधिकता कैंसर और किडनी रोगों सहित 20 प्रकार की गंभीर बीमारियों का कारण बन रही है।

भूजल में भारी धातुओं की खतरनाक मात्रा

मई 2023 में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा लिए गए भूजल के सैंपल की जांच में पाया गया:

आर्सेनिक: भिवानी, फतेहाबाद, करनाल, रोहतक, और सोनीपत जिलों में तय सीमा (10 पीपीबी) से अधिक पाया गया।

यूरेनियम: 17 जिलों में तय मानक (30 पीपीबी) से सवा दोगुना (70 पीपीबी) तक पाया गया।

फ्लोराइड: 17 जिलों में 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर के मानक से कई गुना अधिक, 5.0 से 10 मिलीग्राम प्रति लीटर तक मिला।

नाइट्रेट: 21 जिलों में 45 मिलीग्राम प्रति लीटर के मानक से अधिक मात्रा पाई गई।

आयरन: 11 जिलों में तय मानक (1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर) से अधिक पाया गया।

स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव

खतरनाक धातुओं और प्रदूषकों के कारण हरियाणा में कैंसर और किडनी रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रताप राव जाधव के अनुसार, घग्गर नदी से सटे अंबाला, सिरसा, फतेहाबाद, और कैथल बेल्ट में कैंसर के मामलों में तेज वृद्धि देखी गई है।

कैंसर दर: हरियाणा में हर 1 लाख की आबादी पर औसतन 102 लोग कैंसर से प्रभावित हैं।

वृद्धि दर: पिछले 4 वर्षों में कैंसर के मरीजों की संख्या 11.27% बढ़ी है।

राष्ट्रीय रैंकिंग: कैंसर मामलों में हरियाणा देश में तीसरे स्थान पर है।

प्रमुख प्रभावित जिले

आर्सेनिक: भिवानी, फतेहाबाद, करनाल, रोहतक, सोनीपत।

यूरेनियम: अंबाला, भिवानी, गुरुग्राम, हिसार, जींद, करनाल, सोनीपत समेत 17 जिले।

फ्लोराइड: भिवानी, हिसार, जींद, पानीपत, सिरसा, सोनीपत समेत 17 जिले।

नाइट्रेट: 21 जिलों में, जिनमें गुरुग्राम, हिसार, नूंह, पानीपत, रोहतक प्रमुख हैं।

आयरन: अंबाला, हिसार, कैथल, रेवाड़ी, सिरसा, फरीदाबाद।

विशेषज्ञों की राय और संभावित समाधान

विशेषज्ञों का मानना है कि भारी धातुओं और अन्य प्रदूषकों का लगातार सेवन गंभीर बीमारियों को जन्म देता है। इसका असर केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और कृषि पर भी पड़ रहा है।

संभावित समाधान:

प्रदूषित जल स्रोतों की पहचान कर उन्हें उपचारित करना।

औद्योगिक अपशिष्टों और रसायनों का भूजल में प्रवेश रोकना।

वैकल्पिक जल स्रोतों का उपयोग और जल पुनर्चक्रण की तकनीकें अपनाना।

जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से नागरिकों को प्रदूषित जल के खतरों के प्रति सचेत करना।

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