कोरोना काल में आशा से भरपूर यथार्थवादी सोच सबसे कारगर, जानें इसके अभ्यास के तरीके

positive thinking

कोरोना काल में आशा से भरपूर यथार्थवादी सोच सबसे कारगर, जानें इसके अभ्यास के तरीके

corona kaal mein aasha se bharapoor yathaarthavaadee soch sabase kaaragar, jaanen isake abhyaas ke tareeke

कोविड-19 के खतरों के बीच चल रही है जिंदगी। किस पल कौन संक्रमित हो जाए, इसकी खबर नहीं। संशय के बीच झूलती जिंदगी में सबका मन एक-सा हो, जरूरी नहीं। ऐसे दौर में कोई घोर आशावादी है, तो किसी के लिए यह सबसे बुरा समय है। पर यहीं ऐसे लोग भी हैं जो बड़ी से बड़ी मुश्किल आने पर भी घबराते नहीं। अपनी कर्मठता व संकल्प शक्ति पर यकीन करते हैं। आशा से भरपूर यथार्थवादी सोच रखने वाले यही लोग कहीं अधिक खुशहाल भी होते हैं। इसके लिए किस तरह के अभ्यास की जरूरत है, विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर सीमा झा का विश्लेषण।

एक बंद घर की रसोई के कोने में कांच का अंडाकार मर्तबान रखा था। उसमें चावल भरे थे। एक चूहे ने उसे देखा और उसमें प्रवेश कर गया। मर्तबान के आकार और चिकनाई के कारण चूहे को उसमें कठिनाई तो हुई पर उसने वहां भरपेट चावल खाए। पर वह वहां से निकला नहीं, क्योंकि उसे लग रहा था कि यह उसके जीवनभर का खाना है। पर एक दिन ऐसा भी आया, जब चावल खत्म हो गए। अचानक चूहे को एहसास हुआ कि वह मर्तबान के तल में पहुंच चुका है। उसने ऊपर देखा तो उसके हलक सूख गए। अब उस चूहे के साथ आगे क्या हुआ, यह बताने की जरूरत नहीं।

इस लोकप्रिय नैतिक कहानी की बड़ी सीख यह है कि आशावादी होना अच्छा तो है, लेकिन कोरा आशावाद काफी नहीं। इस बारे में लगातार शोध होते रहे हैं। कोविड के फैलते संक्रमण के दौरान भी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ऐंड पॉलिटिकल साइंस में इस विषय पर एक शोध किया गया।

‘पर्सनैलिटी ऐंड सोशल साइकोलॉजी बुलेटिन’ में प्रकाशित इस हालिया अध्ययन के मुताबिक, आशावादी सोच वालों को लगता है कि उन्हें कोविड से संक्रमित होने का खतरा बहुत कम है। उन्हें यह भी लग सकता है कि वे पर्याप्त सावधानी बरत रहे हैं। वहीं, जो यथार्थवादी हैं वे समझते हैं कि संक्रमण का जोखिम लगातार बना हुआ है। इस अध्ययन के सहयोगी रहे यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ, यूके के शोधकर्ता किस डॉवसन के अनुसार, यथार्थवादी साक्ष्यों के आधार पर निर्णय लेते हैं और यह उनकी मानसिक सेहत के लिए भी अच्छा होता है।

इस समय नौकरियों पर संकट आने के बाद लोगों ने दूसरे विकल्प तलाशे और इसे वक्त की जरूरत माना। रोजाना खबरों की सुर्खियां बन रहे हैं वे लोग, जो इस घोर कठिन समय में भी सुंदर भविष्य की कल्पनाएं गढ़ रहे हैं, आत्मविकास के लिए तत्पर हैं और नए-नए कौशल विकसित कर रहे हैं। यही हैं समय के साथ कदमताल करने और मन में आशा जगाए रखने वाले यथार्थवादी।

बीएचयू के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार पांडेय के मुताबिक ऐसे लोग ‘चाहे मुश्किलें कैसी भी हों, हम हल खोजेंगे’ के संकल्प लिए होते हैं। जाहिर है वे उपरोक्त कहानी के चूहे की तरह ‘कंफर्ट जोन’ में नहीं फंसना चाहते। एम्स, दिल्ली की वरिष्ठ साइकोथेरेपिस्ट डॉ. सुजाता मिन्हास के मुताबिक, यह समय आत्ममूल्यांकन का है। इसे बुरा समय न मानें। खुद को देखने का समय मिला है, इसलिए इसे एक अवसर मानें। डॉ. मिन्हास कहती हैं, ‘समय कैसा हो इस पर नियंत्रण नहीं लेकिन हमारा नजरिया समय के बुरे प्रभावों से हमें बचा सकता है।’

अच्छे की आस, बुरे के लिए रहें तैयार

जाने-माने विचारक लेखक नॉर्मन विंसेट पील ने अपनी किताब, ‘पॉवर ऑफ पॉजिटिव थिकिंग’ में लिखा है, ‘जब आप बेहतर की अपेक्षा करते हैं तो आपके मन में एक चुंबकीय ताकत का संचार होता है। यह आकर्षण के नियम की तर्ज पर आपकी जिंदगी में बेहतरीन मौके लेकर आता है।’ पर आप आशा करते रहें और आपकी मुसीबतें भाग जाएं, ऐसा नहीं हो सकता। यथार्थ को स्वीकार करना ही होता है और इसके लिए प्रयास भी। हमें कदम बढ़ाना ही होगा ताकि समस्या को बेहतर समझ पाएं और कोई ठोस रणनीति बना सकें।

डॉ. राकेश पांडेय के मुताबिक, अधिकतर लोग या तो बहुत आशावादी होते हैं या उन्हें हमेशा कुछ गलत घटने का डर सताता रहता है यानी घोर निराशावादी। पॉजिटिव साइकोलॉजी के वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक माइकेल सेलिग्मैहन के सिद्धांत इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं। उनके मुताबिक, एक सीधी रेखा में दोनों छोर पर घोर आशावादी और घोर निराशावादी होते हैं। बीच में होते हैं यथार्थवादी यानी जो ‘होप फॉर द बेस्ट ऐंड प्रीपेयर फॉर द वस्र्ट’ (अच्छे की आशा रखने वाले और बुरे के लिए तैयार रहने वाले) की मनोदशा में होते हैं। देखें कि इनमें से आप किस श्रेणी में आते हैं? वैसे, इन सब के केंद्र में आशा जरूर रहती है।

आशा से भरे यथार्थवादी बनने के लिए चाहिए कुछ प्रयास

– चुनौतियों को लेकर घोर निराशा और अति आशा की मनोदशा से बाहर निकलने का प्रयास करें।

– चुनौतियों का ईमानदार विश्लेषण करें। उन कदमों पर विचार करें जो इस समय मददगार हो सकते हैं।

– जिन चीजों की अपेक्षा नहीं की है, उनके लिए भी मन को तैयार रखें। तब आप समझ सकेंगे कि आप उन अनपेक्षित घटनाओं से भी निपट सकते हैं, जिनके बारे में आप खुद को लेकर संशय में थे।

– बुरी घटनाओं के प्रति नकारात्मक रवैया न रखें, बल्कि हर समस्या का हल निकल आएगा, इसका भरोसा रखें। यही रचनात्मक हल की तरफ ले जा सकता है।

’ औरों की जिंदगी में रोशनी बिखेरें। बिना किसी अपेक्षा के योगदान करें। हंसी का कारण बनें, उनके दुख में सहभागी बनें। यह सकारात्मक ऊर्जा का संचार करेगा और संकल्प-शक्ति को अधिक मजबूत बनाएगा।

– निराशा भरी मनोदशा को आप अपने हास्य और जिंदादिल अंदाज से सकारात्मक रुख दे सकते हैं। कठिनाइयों में भी कुछ लोग माहौल को हल्का बनाने का प्रयास करते हैं ताकि समस्या भारी न लगे, बल्कि उसका भारीपन कम होता जाए।

– जब मुश्किलों से घिर जाएं तो खुद का खयाल रखना और भी जरूरी है। नियमित योग, बेहतर खानपान और अच्छी नींद से न करें समझौता।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के मनोचिकित्सा विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार पांडेय ने बताया कि जब भविष्य की बात हो और वह अनिश्चित दिखायी दे तो लोग अक्सर खुद पर भी संशय करने लगते हैं। कहीं आशा रखना बुरा तो नहीं, यह भी सोच सकते हैं, क्योंकि जब परिणाम नहीं मिलता तो आशाएं थकने लगती हैं। परेशान वे भी हो सकते हैं जो घोर यथार्थवादी हैं यानी जो घट रहा है, उसको उसी रूप में देखने वाले। शोध से साबित है कि उनमें अवसाद की आशंका भी हो सकती है।

इसलिए यथार्थवादी होने के साथ आशावादी भी होना चाहिए। टेलर नामक मनोवैज्ञानिक ने माना कि बिना आशा खुशहाली नहीं आ सकती। फकेट और ऑर्मर ने 2010 में इसी बाबत शोधपत्र प्रकाशित किया और उन लोगों की बात की जो आसानी से निराशा से आशा और आशा से निराशा के बीच ‘शिफ्ट’ करते रहते हैं। दरअसल, यह लचीलापन उन्हें संतुलित रखने में मदद करता है। संतुलन बनाने में सक्षम यथार्थवादी मुश्किलों में भी निकाल लाते हैं ठोस हल। वे आस को पतवार बनाकर कठिनाई रूपी तूफान को आसानी से पार कर सकते हैं।

अभिनेता शाहरुख खान ने अप्रैल 2012 में येल यूनिवर्सिटी में दिए गए एक भाषण में कहा था कि डर से न डरें, बल्कि डर और असफलता का सामना नहीं करने से आपको डरना चाहिए। भूखे रहने से भी मत डरिए। जरूरत पड़े तो अकेले रहने से भी नहीं, क्योंकि हम सभी को इस रस्सी पर तो अकेले ही चलना होता है।

– आशावादी बनें, पर यथार्थवाद और कर्मठता की जमीन पर खड़े होकर।

– जीवन में उमंग, खुशी, स्वतंत्रता है तो अवसाद, भय, आशंका भी। आशा से भरे यथार्थवादी इन दोनों सच्चाइयों को समझते हैं और असफलताओं को स्वीकार करने से डरते नहीं।

– इस समय दुनिया का लक्ष्य वायरस से बचाव और रक्षा है। ऐसे में निराशावादी यदि अपनी एंजायटी व्यक्त करते हैं तो यह उन्हें अपनी चिंता कम करने में मदद करता है।

corona, corona se kaise bache, corona se kaise bache in hindi, corona se kaise bache essay in hindi, corona se kaise bachana hai, corona se bachne ke tarike, coronavirus se bachne ke upay, coronavirus vaccine

Revolutionary Performance: Unveiling the 2021 Model S Lamborghini Revuelto Price & Features Rolex Sky-Dweller 2023 New Watches The Cheapest Tesla Car Model Milgrain Marquise and Dot Diamond Wedding Ring in 14k white Gold